शनिवार, 12 सितंबर 2020

भोरमदेवगढ़ का निर्माण किसने कराया था ? आइये जानते है।

                

 गोन्डवाना की शान भोरमदेव के बारे में जानकारी

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वर्तमान कवर्धा जिले मे सलेटेकरी पर्वतीय श्रेणियों के तराई मे स्थित भोरमदेव गढ़ यह नागगण्ड चिन्ह धारक कोया वंशीय गोन्ड समुदाय के राजाओं की नगरी है। प्राचीन काल में इसी क्षेत्र को कवधूरा गढ़ कहा जाता था। गोन्डी गण्ड गाथा के अनुसार कवधूरागढ़ मे अपनी राज्यसत्ता प्रस्थापित करनेवाला प्रथम राजा भोरमदेव है, जो गढ़ मंडला के नाग गण्डचिन्ह धारक उईका गोत्रीय नागदेव राजा कस भाई था। इस सबंध मे गढ़वीरो की गाथा मे जानकारी उल्लेखीत है, उसके अनुसार गढ़ मंडला के पोलसिंह नामक नाग गण्डचिन्ह धारक राजा के तीन पुत्र थे, पिता के मनणोपरान्त तीनों भाईयों ने अपने राज्य को तीन हिस्से मे बाट लिया नागदेव गढ़ मंडला मे रहा धुरदेव पाचालगढ़ मे और भोरदेव कवधूरा गढ़ मे अपनी राजधानी स्थापित की आज जिसे कवर्धा कहा जाता है वही प्राचीन कवधूरा गढ़ है। ईसी भोरमदेव राजा के नाम जो राजधानी कवधूरा गढ़ मे स्थापित की गयी, उसे भोरमदेव गढ़ कहा जाता है।

       भोरमदेव गढ़ मे मंडवा महल, खण्डवा महल,छेरकी महल और छवरी महल कर अतिरिक्त भोरमदेव नामक संभू गवरा के पिण्ड का देवालय है। वहा के राजा पंच खण्ड धरती के राजा संभू महादेव के उपासक थे।उस परिक्षेत्र के सभी जनसमुदाय के लोग यह कहते है की,भोरमदेव गढ़ के राजा गोन्ड समुदाय के थे। परंतु कुछ इतिहासकार इसे मानने के लिऐ तैयार नही है, वे ऐतिहासिकता की दृष्टी से भोरमदेव गढ़ के निर्माता कर्ता नागवंशी राजाओं को मानते है। 


परंतु वे नाग गण्डचिन्ह धारक राजा गोन्ड समुदाय के थे यह मानने के लिऎ तैयार नही है, वास्तविकता यह है की ईस गोन्डवाना परिक्षेत्र के वे कटचुरी (कलचुरी) कछवा, नाग,पाण्डू, गंग,नल,शरभपुडी,आदि क्यो न हो यह सभी गोन्ड समुदाय के राजा थे व अपने गण्डचिन्हो के नाम से जाने जाते थे। उक्त सभी नाम गोन्डी भाषा के है। और प्राणीयों के नाम है, उन्होंने सभी धर्मियों को अपने राज्य मे राजाश्रय प्रदान किया था। उनके द्वारा निर्मित वास्तुओं से धार्मिक सहिष्णुता का परिचय होता है। नाग, हैयय, गंग, कछुवा, नल, पाण्डू, शरभपुडी, ईन गण्डचिन्ह धारक राजाओं मे आपसी वैवाहिक संबंध प्रस्थापित किऐ जाने के अनेक उदाहरण है क्यो की उनके समुदाय मे विषम गण्डचिन्ह धारक दो परिवार के मध्य ही वैवाहिक संबंध प्रस्थापित करने का रिवाज था। सम गण्डचिन्ह धारको मे नही

    भोरमदेव संभू महादेव देवालय की स्थापना क्यों की गयी इसके पाश्व में भी एक पौराणिक कथासार उस परिक्षेत्र मे निवास करनेवाले गोन्ड समुदाय मे प्रचलित है। भोरमदेव राजा के वंशजो का राज्य कवधूरागढ़ के पुरवासी ग्राम मे था। वही से वे अपना राज्य कारभार चलाया करते थे। एक दिन ९ शताब्दी के दौरान पुरवासी का राजा अहिराज पन्नासिंह मैकल पर्वत के सालेटेकडी मे आखेट खेलने गया। 


उस वक्त वहा एक जातुकर्ण गुणिया का मढ़िया एवं सिद्धी स्थल था जातुकर्ण गुणिया को दो पुत्र एवं कन्या थी। वह अपने पुत्रो के साथ प्रतिदिन घाटियों और जंगल में आयुवैदिक दवाईयों की खोज में जाया करता था।

     एक दिन जंगल में घूमते हुए पुरवासी के गोन्ड राजा अहिराज पन्नासिंह को मिथलाई दिखाई दी मिथलाई जातुकर्ण गुणिया की कन्या थी। प्रथम मुलाकात में ही वह मिथलाई के रुप पर मोहित हो गया । राजा प्रतिदिनी एकान्त मे उससे मिलने जाया करता था। जिसकी वजह से उनके बीच प्रेमधारा प्रगाढ़ होती गयी प्रणय को विवाह मे परिणित करनें की चर्चा हुई और राजा अहिराज पन्नासिंह ने जातुकर्ण गुणिया के समक्ष विवाह के लिऎ निवेदन किया, जातुकर्ण सहमत नही हुआ।


ईसिलिऎ राजा पन्नासिंह और मिथलाई ने संभू महादेव की आराधना कर कठोर तप आरंभ की जिसे देखकर जातुकर्ण गुणिया द्रवित हो गया।और उसने दोनों का विवाह बंधन में बंधने की अनुमती प्रदान की विवाह के प्रश्चात अहिराज पन्नासिंह ने अपने संभु महादेव की प्रतिस्थापना मैकल पर्वतीय श्रुखंलो के वृताकार स्थल मे कर एक देवालय बनवाया और उसका नाम अपनें पुर्वजों की देवता के रूप में भोरमदेव रखा उसी भोरमदेव देवालय के परिक्षेत्र मे राजा अहिराज ने खण्डवा महल, मंडवा महल, छपरी महल और छेरामहल, बनवाकर पुरवासी नगरी से अपनी राजधानी स्थलांतरित की, भोरमदेव देवालय का कार्य विभिन्न चरणों मे किया गया है। गोन्डवाने के महाकोसल परगना के खजुराहो के नाम से जाना जाता है।


    संभू महादेव कोया वंशीय गोन्ड समुदाय का पंच खण्ड का स्वामी था। भोरमदेव मे सर्वाधिक मुर्तिया संभू महादेव और उसकें गणों की है। देवालय तीन दिशाओं मे तीन प्रवेश द्वार है। जहा सोपानों के माध्यम से चढा़ जा सखता है। सभा मण्डप वर्गाकार है, सभा मण्डप से गर्भगृह में प्रवेश पाने का द्वार है। गर्भगृह का प्रवेशद्वार काफी अलंकृत है।

      कोया वंशीय गोन्ड समुदाय के धार्मिक मान्यता के नुसार भोरमदेव देवालय आज भी आराध्य है। क्वार में महामेला लगता है। उसी के समीप एक बुढा़ताल है। भोरमदेव गढ़ के मण्डवा महल मे राजा, छेरकी महल में राणी, छोरा महल में राजकुमार और छपरी महल में राजकुमसरियों का निवास था। नाग गण्डचिन्ह धारक गोन्ड राजाओं का यह अनोखा गढ़ और भोरमदेव मंदिर से आज भी जाना जाता है।



   

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