सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

शंभू नरका पंडुम या गोंडीयन महाशिवरात्रि की विशेष जानकारी।

 शंभू नरका पंडुम या महाशिवरात्रि विशेष - 

सभी गोंडियन जनों ता सेवा-सेवा, सेवा-जोहार। वेन (जीवित  व्यक्ति), विरंदा (परिवार),

विडार (समाज) रोन (घर), रच्चा (आंगन),

मेढ़ो (सीमा), पर्रो (अंतरिक्ष/आकाश),

डंगुड़ (जंगल), नेल-नार (खेत-गाँव)  ता पाठ पीढ़ा ना (शक्ति) सेवा-सेवा।

सेवा-जोहार कियातोना।

शंभू नरका पंडुम या गोंडीयन महाशिवरात्रि की विशेष जानकारी।



अब यहा से हमारे पेन ठाने जहाँ इन 18 पेन पट्टाओं का हेत हिंदान (गोंगो)  करते हैं (मुख्य स्थान जहा इनकी व्यवस्था होती है।


 1. पैन्जिया (धरती) दाई

 2. पूर्वा (सूरज)दाऊ

 3. नलेंज (चन्द्रमा)दाई

 4. फड़ापेन (बड़ादेव)  बुढ़ालपेन

 5. परसापेन (पाँच मुठवाओं-दौगन गुरू,धनेत्तर बैगा,पाड़ी कुपाड़ लिंगो, हीरा सुका पाटलीर , भीमाल पेन का संयुक्त ठाना/शक्ति केंद्र)

 6. पोयाल्क आड़ा (हमारे 88 शंभू सेक)

 7. भूमका आड़ा,नेगीं आड़ा (मीजान  के विशेषज्ञ)

 8. सय्यूंग सियान (पंच मुखिया न्यायिक)

 9. सय्यूंग मुठवा (शिक्षको का संघ), खेरों दाई,पाड़ी पहांदी कुपाड़ लिंगो,भीमालपेन-ठाकुरपेन,खिला मुठ्वा,हीरा सुका पाटालीर

 10. सजोरपेन- इसके दो प्रकार

1, बुढ़ालपेन - मूल पितृशक्ति पेन,

2, पालो दाई/बूढ़ी दाई/गाडवा दाई- मूल मातृशक्तिपेन)

 11. गंगारपेन (चुडूरपेन में मुन्ने बिरंदा ना अव्वालपेन,बाबालपेन )

 12. मावा वाना संल्ला-गांगरा पेन  (मातृशक्ति-पितृशक्ति)

 13. मुर्राल पेन (मातृ शक्ति पेन पठा )

 14. बूर्राल पेन (पितृ शक्ति पेन पठा)

 15. अव्वाल पेन (मातृशक्ति)

 16. बाबालपेन (पितृशक्ति),

 17. सांगो-एना आड़ा (सांगो-मामा की लड़की, एना-जीजा जी),

 18. सेलार-तम्मू आड़ा (सेलार-बहन, तम्मू-भाई),

 (आड़ा-शक्ति), प्रकृति शक्ति पुकराल आड़ा ना सेवा-सेवा। सेवा-जोहार। सेवा-जोहार सगा सेरवी अनी पाड़ी।


 संभू शेक नरका- 


संभू शेक नरका को शंभू जागरण की रात कहा जाता हैं। यह पंडुम (त्यौहार) कोइतूर गण्डजीव इसलिए मनाते हैं कि उस दिन इस पाँच खण्ड की धरती गण्डोदीप के अधिपति/स्वामी/राजा संभू शेक ने अपने गण्डजीवों को मौत के मुँह में जाने से बचाने के लिए जो विष/जहर धारण किया था उसे तंदरी जोग (योग साधना/योग सिध्दी) द्वारा पचाकर वे पूरे होश में आ गए थे और सम्पूर्ण गण्डजीवों में बहुत ही ख़ुशी के माहौल छा गया था। इसलिए इस पर्व (पंडुम)  को वे संभू नरका पंडुम कहते हैं। 


इस बारे में कोइतूर गोंड समुदाय में ऐसी जनश्रुति है कि प्राचीन काल में सतपुड़ा के पेन्कमेढ़ी (पचमढ़ी) कोट के गणप्रमुख कुलीतरा के पुत्र कोसोडूम ने अपने तपोबल (तंदरी जोग) से इस गण्डोदीपके सभी प्राणी मात्रो के कल्याण साध्य करने वाला मूंद शूल सर्री त्रिशूल मार्ग दिए हैं तथा इस पंचखण्ड धरती में एक के बाद दूसरा ऐसे कुल मिलाकर 88 संभू शेकों ने अपनी गोंडवाना धरती पर राज़ चलाई। संभू मादाव याने पंचखण्ड धरती के पिता या संभू हमारे पिता होता हैं जो कालांतर में संभू मादाव से संभू महादेव शब्द बना है। 


सतपुड़ा अर्थात सत्ता का पुड़ा या केंद्र के पेन्कमेढ़ी (पचमढ़ी)से इस गण्डोदीप पर शासन चलाने वाले संभू शेक अपनी अर्धागनियों (मायजूओं) के जोड़ी के साथ जाने जाते हैं। संभू-मूला उनकी प्रथम जोड़ी हैं, संभू-गवरा मध्य की जोड़ी हैं और संभू-पार्वती अंतिम 88 वें जोड़ी हैं। संभू-गवरा के समय जिस समय गोंडवाना लैंड अपने चरमोत्कर्ष पर था जिसकी ख्याति चारो-ओर थी। संभू-गवरा के समय इस गण्डोदीप को सगावेन समुदाय से संरचित कर गोंडी पुनेम गोंडी पुनेम मूल्यों को एक सूत्र में पिरोनें और अनुबंधित करने का कार्य रुपोलंग पारी पहांदी कुपार लिंगो बाबा ने किया,जिसके कारण सभी गण्डजीव अमन-चैन से अपने जीवन की निर्वाह किया करते थे। संभू-पार्वती के शासनकाल में कोया लिंगो गोंडी पुनेम मुठवा (शिक्षक)थें। उन्ही के जमाने में इस गण्डोदीप पर एशिया माइनर से आर्यो के आगमन हुआ। 


संभू शेक की गण्डोदीप के कोयामुर्री दीप में किसी भी विदेशी व्यक्ति के प्रवेश पाना निषेध (प्रतिबंध) था। इस धरती पर प्रवेश पाने के लिए, यहाँ स्थायी रूप से बसने/निवास करने के लिए, अपने वंश विस्तार करनें के लिए और मरणोपरांत इसी धरती पर समाधिस्थ होने के लिए इस धरती के राजा संभू शेक मादाव (महादेव) की अनुमति लेना जरूरी था। जो कोई बिना अनुमति के ऐसा करता या प्रवेश किया करता उसे संभू शेक अपने तंदरी जोग (योग साधना) के बल (ताकत) पर जलाकर भस्म (राख) कर दिया करते थे। तंदरी जोग (योग साधना) को ही आजकल संभू के तीसरा नेत्र कहते हैं। उसे संयुग भुई तोर राजा (पंचखण्ड धरती के राजा) और हमारे सगा समाज के धरती से मिलते-जुलते क्रियाकलापों और संस्कृति के कारण कोइतूर/आदिवासी समाज को धरती पुत्र कहा जाता हैं। ऐसे संभू शेक की धरती पर विदेशी आक्रमण हुए, कोइतूर/आदिवासी गण्डजीवों और आर्यो में युध्द छिड़ गया। कोइतूरों/आदिवासियों के संभू मा-दाव(महादेव) बहुत शक्तिशाली थे इसलिए आर्यो का गोंडवाना लैंड (धरती) पर प्रवेश पाना असम्भव हो गया। 


इस धरती पर कब्जा जमाने के लिए अंत में आर्यो ने कूटनीतिक तरीके, अन्याय का सहारा लिया।साधु-सन्तों के रुप में जासूस भेजने शुरू किए, जिन्होने कोइतूर/आदिवासी के शक्तियों का पता लगाया। जब जासूसों द्वारा आर्यो को पता चला कि कोइतूरों के शक्तियों के स्रोत संभू, लिंगो और सगा वेन (सगा समाज) का समूह में एकता में रहना हैं। उनके राजा संभू जब तंदरी जोग/योग साधना में लीन होते हैं तब तक उनको हराना असम्भव हो जाता है। इसलिए संभू शेक की शक्तियों को निष्क्रिय करने के लिए आर्यो के राजा इन्द्र ने अपने राज्य के रूपवती कन्या पार्वती को संभू शेक की सेवा में भेजा, ताकी उनको अपनी मोहजाल में फंसा सके किन्तु वह भी संभू शेक की उपासक, भक्त, और अर्धांगनी बन गई। आर्यो के फेका हुआ जाल विफल हो गया। अबकी बार उन्होंने दूसरी कूटनीतिक चाल चलने का फैसला किया। आर्यो और कोइतूरों/आदिवासियों में भीषण युध्द चल रहा था कोइतूर शांतिप्रिय थे तो आर्य हिन्साचारी थे। दोनों पक्षों में शांतिपूर्ण जीवन जीने के अनेक प्रस्तावों पर सहमति बनी और अंत में प्रीतिभोज का प्रस्ताव पास किया गया संभू शेक इस षडयन्त्र को समय पर समझ गए उनहोंने अपनी सगा समाज को भोजन करने के लिए मना कर दिया और पहले स्वयं भोजन ग्रहण कर लिया। विषयुक्त भोजन से संभू बेहोश हो गया।जिससे समूचे कोइतूरों/आदिवासियों में क्रोध फूट पड़ा और वे सभी आर्यो को मार भगाया। 


इधर संभूशेक को जबर्दस्त विषबाधा हो गया था कई तरह के प्रयास करने के बाद भी संभू (महादेव) होश में ना आ सके। संभू शेक को अपनी तंदरी जोग/योग साधना/योग सिध्दी के बल पर उस खतरनाक जहर को पचाने के लिए 13 दिन का समय लगाया और सभी सगा समाज उनके सुरक्षा कवच बनकर रहें और अंत समय पर सच्चाई की जीत हुई। प्रीतिभोज माघ पूर्णिमा को आयोजित किया गया था और उसके 13 दिन बाद संभू होश में लौट आए थें इसलिए इस पर्व या रात्रि को संभू शेक नरका अर्थात संभू के जागरण की रात कहा जाता है। उसे ही अन्य लोग महाशिवरात्रि कहते हैं। इसलिए संभू शेक के कोइतूर/आदिवासी सगा समाज इस पर्व/पंडुम को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। 


 अर्वे आम्ट- उंदींग मन्ट- केपताल मन्ट (संगठित रहों- एकजुट रहों- जागते रहो)।

मावा नाटे- मावा राज।

गोंड-गोंडी-गोंडवाना।

एक समाज-एक आवाज़-एक रिवाज़।


प्रकृति शक्ति को पहचानों,

 प्रकृति की ओर लौटों,

 मेरी संस्कृति ही मेरी पहचान,

मेरी सभ्यता ही मेरा अभिमान 

गोंडवाना भूमि  मेरा महान

सदैव प्रसन्न रहिये

जो प्राप्त है- पर्याप्त है, 

जिसका मन मस्त है, उसके पास समस्त है!!

जय सेवा, जय बड़ादेव, जय गोंडवाना

 लेखन - सैलेरपुर गोंडवाना दर्शन


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

750 क्या है? गोंडवाना 750 का मतलब क्या है? पूरी विस्तार से जाने।

    गोंडी धर्म में 750 का महत्व - हमारे सगाजनो को 750 के बारे में पता होना चाहिए ।अगर आप गोंड हो तो आपको अगर कोई पूँछ लिया तो आपको जवाब  पता होना चाहिये। कई बार दूसरे समाज के लोग आपको पूछें तो आप उन्हें विस्तार से समझा सके। की 750 का मतलब क्या है। तो चलिए विस्तार से जानते हैं।       750 का क्या अर्थ है? जाने गोंडी धर्म में महत्व -         750 का अर्थ है - शुरुआती अंक 7 से मतलब है। मनुष्य में सात प्रकार का आत्मा गुण होता है।     (1) सुख    (2) ज्ञान    (3) पवित्र    (4) प्रेम करना    (5) शांति    (6) आनंद    (7) शक्ति दूसरा अंक है 5 , पाँच का मतलब शरीर के पाँच तत्व से है। शरीर के पाँच तत्व   जिससे जीवन है - इनके बिना जीवन असंभव है।    (1) आकाश    (2) पृथ्वी    (3) पानी    (4) अग्नि    (5) वायु शून्य का मतलब है निराकर जैसे की हमारे प्रकृति का कोई आकार नहीं है। माँ के गर्व से भी शून्य का मतलब है।जैसे हम पृथ्वी पर जन्म लेते है।    0 = निराकार है, जिसका कोई आकार नहीं।      7+5+0=12 धर्म गुरु पारी कुपर लिंगो जी ने एक से बारह सगापेनो में बाँट दिया है। जैसे कि देवों की संख्या 2, 4,

गोंडी व्याकरण, गोडवाना भाषा सिखें|

जय सेवा सागा जनो ,       कुछोडों सैल प्रथम पृथ्वी का निर्माण हुआ, जो आगे चलने दो महाद्वीप में हुआ था, जैसा दो महाप्रलय का निर्माण, एक था यूरेशिया और दूसरा था गोंडवान महाप्रलय ये जो गोंडवाँ महाप्रपात एक महाप्रलय था| यह प्राचीन काल के प्राचीन महाप्रलय पैंजिया का दक्षिणी था| उत्तरी भाग के बारे में यह बताया गया| भारत के महाद्वीप के आलावा में महाद्वीप गो और महाद्वीप, जो मौसम में उत्तर में है, का उद्गम स्थल| आज से 13 करोड़ साल पहले गोंडवांस के वायुमंडलीय तूफान, अंटार्टिका, अफ़्रीका और दक्षिणी महाप्रलय का निर्माण |       गोंडवाना नाम नर्मदा नदी के दक्षिण में प्राचीन गोंड राज्य से व्युत्प्न्न है, गोंडवाना नाम का सबसे पहला विज्ञान है | से गोंडिय़ों की भाषा का उद्गम था|          गोंडी भाषा में भारत के एक बड़े आकार का है| जैसा आज की दुनिया में लागू होने वाली भाषा के साथ लागू होने वाली भाषा में जलवायु परिवर्तन की भाषा पर लागू होता है, अगर कोई वैरिएंट दुनिया में लागू होता है, तो संस्कृति, सभ्यता, भाषा, धर्म, कुछ भी लागू होता है| भाषा शब्द शब्द का प्रश्न है| पासा पा पीयनीमाटा   ओ सल्ला शक्ति इम , गा

गोंड और राजगोंड में क्या अंतर है? आखिर ये दोनों हैं क्या?

गोंड और राजगोंड में अंतर बताएं? आखिर ये दोनों हैं क्या? गोंड और राजगोंड में इन दोनों के बीच रोटी और बेटी का संबंध नहीं होता ऐसा क्यों? गोंड क्या है कौन है?-  ये तो आप सभी गोंडियन समाज के सगाजनों को पता ही होगा कि हम कौन हैं क्या है? फिर भी जिसको नहीं पता है तो में उसको थोड़ा सांछिप्त में बता देता हूँ। गोंड अनादि काल से रहने वाली भारत की प्रथम मूल जनजाति है या भारत की प्रथम मूलनिवासी जाति है। गोंड जनजाति को कोयतूर भी कहा जाता है क्योंकि कोयतूर भारत के प्रचीन नाम कोयामूरी द्वीप के रहने वाले वंशजों में से है। कोया पुनेम में कोयतूर जन उसे कहा गया है जो मां की कोख से जन्म लिया है न की किसी के मुंह, पेट या भुजा या पैर से जन्मां हो। गोंडी दर्शन के अनुसार भारत का प्रथम नाम गोंडवाना लैंड के नाम से जाना जाता है और द्वितीय नाम सिगार द्वीप एवं तृतीय नाम कोयामूरी द्वीप बताया गया है।   गोंड जाति के लोग प्रकृतिक पूजक होते हैं एवं उनका खुद का गोंडी धर्म है, और गोंड हिंदू नहीं है। क्योंकि गोंडो के हर रीति रिवाज धर्म संस्कृति बोली भाषा, तीज त्यौहार, रहन सहन, आचार विचार और संस्कार तथा सभ्यता सब हिंदूओ से