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आदिवासी वीर राणा पुंजा भील का इतिहास|| History of Adiwasi Veer Rana Punja Bhil.

आदिवासी वीर राणा पुंजा भील के जीवन और उपलब्धियों के बारे में || History of Adiwasi Veer Rana Punja Bhil|| राणा पुंजा भील: भील समुदाय के एक नायक राणा पुंजा भील 16वीं सदी के योद्धा थे जिन्हें भील समुदाय का नायक माना जाता है। उनका जन्म 1540 में भारत के राजस्थान के मेरपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता, दूदा होलंकी, एक भील सरदार थे, और उनकी माँ नाम केहारी बाई थीं। पुंजा छोटी उम्र से ही एक कुशल योद्धा था, और वह भील सेना के रैंकों के माध्यम से तेजी से बढ़ा।  1568 में, मुगल सम्राट अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण किया, एक राजपूत साम्राज्य जिस पर राणा प्रताप सिंह का शासन था। मुग़ल एक शक्तिशाली बल थे, और उन्होंने जल्दी ही राजपूत सेना को पराजित कर दिया। हालांकि, पुंजा और उसके भील योद्धाओं ने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया। उन्होंने मुगलों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध छेड़ा और भारी जनहानि की। अंततः मुगलों को मेवाड़ से हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। पुंजा और उनके भील योद्धाओं को नायक के रूप में प्रतिष्ठित किया गया था, और उन्हें आज भी दमन के खिलाफ प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है। प्रारंभिक जीवन और शि
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सर्वप्रथम शिक्षित दलित महिला सावित्रीबाई फुल्ले के बारे में

  सावित्रीबाई फुल्ले : प्रथम महिला शिक्षिका भारतीय समाज में बढ़ रही कुरीतियों, जातिवाद और महिला अशिक्षा तथा अत्याचार को देखते हुए। 19वीं शताब्दी में कई विचारकों ने समाज सुधार के अनेक कार्य किए। इन्हीं समाज-सुधारको में से एक नाम सावित्रीबाई फुले था। सावित्रीबाई जैसे कुछ विचारकों ने समाज सुधार का जिम्मा उठाया और समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाएं। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय समाज आज कुछ हद तक कुरीतियों और शोषण के प्रति जागरूक हो गया है।  परंतु आज भी सावित्रीबाई फुले जैसे समाज सुधारकों की जरूरत हमारे समाज को महसूस होती है। आज के इस लेख में जानेंगे कि सावित्रीबाई फुले कौन थी? और उनके द्वारा स्त्रियों के उत्थान के लिए क्या-क्या कार्य किए गए थे? और साथ ही हम यह भी समझने का प्रयास करेंगे की सावित्रीबाई फुले के विचार क्या थे? वह कैसे भारत का निर्माण करना चाहती थी? तो यदि आप सावित्रीबाई फुले के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे इस लेख को पूरा पढ़ें। कौन थी सावित्रीबाई फुले?  सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के नायगांव में 3 जनवरी 1831 में हुआ था। इनके पिताजी क

आदिवासी होली कैसे मनाते है? आदिवासियों का होली के बारे में क्या मान्यता है?

  आदिवासी होली कैसे मनाते है ? इतिहास एक ऐसा सच है जो हमने कभी देखा नहीं है लेकिन यह चीज हमें स्वीकार नी पड़ती है। इतिहास हमें अपने जीवन में बहुत कुछ सिखाता है और भविष्य की कल्पना करने में मदद करता है। वैसे ही कुछ हम आपको पुराना इतिहास बताते हैं जो करोड़ों साल पुराना है। वैसे तो हम अपनी भारतीय संस्कृति के अनुसार होलिका को जलाते भी है और अगले दिन होली खेलते भी है। लेकिन यहां   हमारे आदिवासियों में मान्यता अलग हैं। आज आप जानेंगे कि आदिवासी होली कैसे मनाते हैं? होली के बारे में आदिवासियों की विचारधारा आज हम आपको होली त्योहार से जुड़ी आदिवासियों की विचारसरणी के बारे में बताएंगे। कुछ आदिवासियों का मानना है कि होली जलाना भी बहुत बड़ा पाप है! शायद आपको यह जानकर हैरानी होगी और यह लेखन भी बहुत ही खास है की आदिवासी होली कैसे मनाते हैं? भारत के अंदर कई सारे ऐसे आदिवासी है जो आज भी अपने कोयातुर समाज के विधि-विधान का पालन करते हुए। आज भी होली पर्व मनाते है। लेकिन आज के समय में जिस प्रकार से होली के बारे में कथा कहानी में बताया व पढ़ाया जाता है। इस प्रकार कदापि नही है। क्योंकि जब से हमारे देश मे आर्

जयपाल सिंह मुंडा जीवनी।𑴓𑴥𑴠𑴱𑴧 𑴫𑴲𑵀𑴬 𑴤𑴵𑵀𑴘𑴱 Jaipal sigh munda j

   Jaipal Singh Munda koin tha  𑴓𑴥𑴠𑴱𑴧 𑴫𑴲𑵀𑴬 𑴤𑴵𑵀𑴘𑴱 आदिवासी वीर योद्धा इतिहास में हमें सिखाया गया है कि भारत को आजादी हमारे भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दी थी लेकिन भारत की आजादी के पहले भी बहुत से हमारे योद्धा थे जिन्होंने भारत को आजादी प्राप्त कराने में बहुमूल्य काम किया था। जब भारत की आजादी का नाम लिया जाता है तो हमें सिर्फ गांधी जी का नाम याद आता है लेकिन उनसे भी पहले बिरसा मुंडा, रानी  लक्ष्मीबाई, वीर टंट्या भील, पेरियार, वीर गुंडाधूर धूरवा एवं कोमोराम (कुमूरम) भीम, बाबुराव पुल्लेसूर शेडमाके आदि ऐसे बहुत बड़े बड़े नाम हैं जिन्होंने भारत को अंगेजो एंव मनुवादी से आजादी दिलाने में सबसे बड़ा हाथ था। शिक्षा को बढ़ावा दिया वैसे तो हमें सिर्फ यही नाम याद है लेकिन आप में से शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत के संविधान को आगे बढ़ाने में और भारत का नाम रोशन करने में श्री ईश्वरदास जयपाल सिंह मुंडा का भी बहुत बड़ा हाथ था।  आप में से बहुत सारे लोग शायद यह नाम कभी सुने ही नहीं होंगे! पहले का समय ऐसा है जहां पर हथियारों के बगैर कोई  लड़ाई नहीं लड़ी जाती थी और आ

गोंडवाना वीर टंट्या भील (𑴖𑵀𑴖𑵅𑴥𑴱 𑴣𑴳𑴧)का इतिहास के बारे में|

  टंट्या भील 𑴖𑵀𑴖𑵅𑴥𑴱 𑴣𑴳𑴧 ब्रिटिश साम्राज्य के समय टंट्या भील नाम से एक सक्रिय डकैत हुआ करते थे जिन्हें भारतीय जनता द्वारा 'भारत का रॉबिनहुड' के नाम से जाना जाता था। परंतु ब्रिटिश काल में उन्हें अपराधी और नकारात्मक छवि वाले व्यक्ति के रूप में दर्शाया जाता था। टंट्या मामा का इतिहास- कहानी टंट्या भील का जन्म एक आदिवासी समुदाय में हुआ था। इस आदिवासी समुदाय द्वारा नौ गजा पीर का पूजन किया जाता था। ऐसे में जब टंट्या भील का जन्म हुआ तो उनके पिताजी द्वारा नौ गजा पीर के सामने मन्नत मांगी गई थी कि उनका पुत्र हर महिला, दुखी और गरीब की रक्षा करने वाला हो। इसी आधार पर टंट्या भील भारतीय रॉबिनहुड बनने में सक्षम हुए। उनकी बहादुरी और गरीबों के मसीहा बनने को लेकर अक्सर सरकारी अफसर सहमे रहते थे। इसलिए उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात अंग्रेजों का दमन करने को ही अपने जीवन का प्रमुख लक्ष्य बनाया।  टंट्या भील को पहली बार सन 1874 में गिरफ्तार किया गया जहां उन्हें 1 वर्ष तक की सजा सुनाई गई थी। बल्कि दूसरी बार सन् 1878 में हाजी नसरुल्लाह खान युसूफ जूही द्वारा उन्हें गिरफ्तार करने के उपरांत

डॉ भीमराव अंबेडकर(𑴘𑴱𑵀. 𑴣𑴲𑴤𑴦𑴱𑴨 𑴀𑵀𑴢𑴺𑴘𑴌𑴦) के बारे मे पुरी जानकारी|

 डॉ भीमराव अंबेडकर  के बारे मे जानकारी|𑴘𑴱𑵀. 𑴣𑴲𑴤𑴦𑴱𑴨 𑴀𑵀𑴢𑴺𑴘𑴌𑴦 डॉ भीमराव अंबेडकर का पूरा नाम भीमराव रामजी सकपाल था। उनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के अम्बवाड़े गांव में हुआ था। वर्तमान समय में डॉ भीमराव अंबेडकर की जन्म भूमि को भीमराव अंबेडकर नगर के नाम से जाना जाता है। डॉ भीमराव अंबेडकर जी बचपन डॉ भीमराव अंबेडकर जी बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी और जिज्ञासु प्रवृत्ति के माने जाते थे। बाबा साहेब को एक अर्थशास्त्री, महान राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक की उपाधि से नवाजा गया है। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी एक प्रतिभाशाली छात्र थे जिन्होंने विभिन्न विषयों में महत्वपूर्ण शिक्षा हासिल की थी। बाबा साहब अंबेडकर ने भारत देश में अर्थशास्त्री, वकील, पत्रकार और राजनीतिज्ञ के रूप में अपनी अहम सेवाएं प्रदान की है। उनके इस महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें अनेक मेडल देकर भी सम्मानित किया गया था। सन 1990 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी को मरणोपरांत भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया था। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर बौद्ध धर्म की शिक्षा से अत्यध

आदिवासी (गोंड) दिपावली (देवारी) कैसे मनाते हैं|

  दियरी या दियारी (दीपक) एक कोया-पुनेमी फसलोत्सव कोया पुनेम के संस्थापक मुठवा पारी पहाण्दी कुपार लिंगों ने कोयामूरी द्वीप पर मानव के लिए सर्व प्रथम धान की फ़सल की ही शुरुआत की थी इसलिए मानव जीवन के लिए धान बहुत महत्त्वपूर्ण था. आज भी भारत के ज़्यादातर हिस्सों में धान पर आधारित खेती के सहारे ही मानव का जीवन यापन होता है । प्रकृति पर आधारित जीवन जीते जीते मानव ने अपने आस पास शिकार की संभावनाओं को देखा और समय बीतने के साथ साथ कृषि को अपनाया कृषि भी कोई यकायक नहीं हुई, बल्कि जंगल से इकठ्ठा करके लाये गए फल-फूल, बीज और अनाज को उपयोग के बाद मानव आवासों के आसपास फेंक देता था और उन फेंके गए महत्त्वपूर्ण फसलों के पेड़ पौधे उगे फिर उनको अपने निकट ही वो चीजें मिलने लगी जिनके लिए वो दूर तक भ्रमण करते थे. इस विचार ने उन्हें खेती का विचार दिया फिर खेती के लिए मानव श्रम की जरूरत पड़ी जिसके विकल्प के रूप में पशुओं को पालतू बनाकर उन्हें अपनी सुरक्षा और कृषि कार्यों के लिए प्रयोग किया जाने लगा । पशु पालन और कृषि की स्थिति तक इस प्राचीन देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था क्यूंकि यहाँ धन धान्य की प्रचुर मात्रा