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सर्वप्रथम शिक्षित दलित महिला सावित्रीबाई फुल्ले के बारे में

 सावित्रीबाई फुल्ले : प्रथम महिला शिक्षिका


भारतीय समाज में बढ़ रही कुरीतियों, जातिवाद और महिला अशिक्षा तथा अत्याचार को देखते हुए। 19वीं शताब्दी में कई विचारकों ने समाज सुधार के अनेक कार्य किए। इन्हीं समाज-सुधारको में से एक नाम सावित्रीबाई फुले था। सावित्रीबाई जैसे कुछ विचारकों ने समाज सुधार का जिम्मा उठाया और समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाएं। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय समाज आज कुछ हद तक कुरीतियों और शोषण के प्रति जागरूक हो गया है। 


परंतु आज भी सावित्रीबाई फुले जैसे समाज सुधारकों की जरूरत हमारे समाज को महसूस होती है। आज के इस लेख में जानेंगे कि सावित्रीबाई फुले कौन थी? और उनके द्वारा स्त्रियों के उत्थान के लिए क्या-क्या कार्य किए गए थे? और साथ ही हम यह भी समझने का प्रयास करेंगे की सावित्रीबाई फुले के विचार क्या थे? वह कैसे भारत का निर्माण करना चाहती थी? तो यदि आप सावित्रीबाई फुले के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे इस लेख को पूरा पढ़ें।


कौन थी सावित्रीबाई फुले? 


सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के नायगांव में 3 जनवरी 1831 में हुआ था। इनके पिताजी का नाम खानदोजी नेवस और माता का नाम लक्ष्मी था। इनके परिवार द्वारा महज 12 वर्ष की छोटी सी उम्र में इनका विवाह ज्योतिराव फूले के साथ करा दिया गया। परंतु शायद इनकी किस्मत काफी अच्छी थी कि इन्हें ज्योतिराव फुले जैसे पति मिले जिन्होंने जीवन के प्रत्येक कदम पर इनका साथ दिया। 


हम आपको बता दें कि सावित्रीबाई फुले के पति ज्योति राव फूले एक विख्यात विचारक, समाज सुधारक, दार्शनिक और लेखक थे। इस कारण उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई से भी आगे पढ़ने के लिए कहा और सावित्रीबाई फुले ने अपने विवाह के बाद शिक्षा प्राप्त की। इसके पश्चात सावित्रीबाई फुले और इनके पति ज्योति राव फुले ने मिलकर भारतीय समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाने का निश्चय किया। उस समय भारतीय समाज कई प्रकार की कुरीति जैसे बाल विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा, दहेज, जातिवाद आदि से बुरी तरह ग्रस्त था।


सावित्रीबाई फुले द्वारा स्त्रियों के लिए किए गए कार्य


सावित्रीबाई फुले स्त्रियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया उनका मानना था कि स्त्रियां केवल घर खेत का कार्य करने के लिए नहीं बनी वह पुरुषों से बेहतर कार्य कर सकती हैं। इसलिए सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योति राव फुले के साथ मिलकर 1848 महाराष्ट्र के पुणे में प्रथम बालिका विद्यालय की स्थापना की। इसके पश्चात उन्होंने कुल 18 ऐसे विद्यालयों का निर्माण करवाया जिनमें केवल लड़कियों को शिक्षा दी जाती थी। 


ऐसा नहीं है कि सावित्रीबाई फुले केवल लड़कियों को पढ़ाने का कार्य करती थी।बल्कि वह इस बात का भी ध्यान रखती थी कि लड़कियां अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर ना जाए। किसी भी तरह की समस्या आने पर उनके घर जाकर उनके माता-पिता को समझाने का प्रयास करती थी। ताकि उनकी शिक्षा में कोई बाधा उत्पन्न ना हो। सावित्रीबाई फुले ऐसी पहली भारतीय महिला की जिन्होंने महिला शिक्षिका के तौर पर लड़कियों को शिक्षित करने का कार्य किया।


इसके अतिरिक्त सावित्रीबाई फुले का ध्यान उन दलित लड़कियों पर भी था। जिन्हें जातिगत भेदभाव के कारण शिक्षा से वंचित रखा जा रहा था। इस कारण सावित्रीबाई फूले नहीं 1852 में पहले दलित बालिका विद्यालय का निर्माण करवाया।


सावित्रीबाई फुले द्वारा किए गए अन्य कार्य


महिला शिक्षा के अतिरिक्त सावित्रीबाई फुले ने कई ऐसे सामाजिक मुद्दों को उठाया जिनके कारण भारतीय लोगों में से मानवतावाद, स्वतंत्रता, समानता, भाईचारे जैसे मूल्य समाप्त होते जा रहे थे। सावित्रीबाई फुले ने भारतीय समाज के सुधार के लिए कई अभियान चलाए और कार्य किए जिससे भारतीय समाज जातिगत भेदभाव, लैंगिक भेदभाव आदि से मुक्ति पा सके।


 सावित्रीबाई फुले ने ना केवल शिक्षा के महत्व को समझाने के लिए जागरूकता फैलाई साथ ही उन्होंने शिशु हत्या पर रोक लगाने के लिए भी अभियान चलाएं। उन्होंने एक ऐसे आश्रम का निर्माण किया जहां पर ऐसे शिशु का पालन पोषण किया जा सके। जिसकी हत्या के प्रयास किए जा रहे हो।


इसके अतिरिक्त सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योति राव फुले नहीं मिलकर सत्यशोधक समाज नामक एक संगठन की नींव रखी। जिसके माध्यम से यह भारतीय समाज में हो रहे जातिगत भेदभाव का विरोध करते थे और साथ ही महिला शिक्षा का समर्थन करते थे।


सावित्रीबाई फुले ने बिना पुरोहित के शादी और दहेज प्रथा को कमजोर करने के लिए अभियान चलाएं।


 इसके अलावा उन्होंने अंतरजातीय विवाह पर भी विशेष जोर दिया।वह भारतीय समाज में फैले जातिवाद के खिलाफ थी इस कारण उन्होंने दलितों  के उत्थान के लिए विशेष प्रयास किये।


समाज में जागरूकता फैलाने के लिए सावित्रीबाई फुले ने एक कवित्री की तरह दो पुस्तकों की रचना की जिनमें पहली पुस्तक का नाम "काव्य फुले" तथा दूसरी पुस्तक का नाम "बावनकशी सुबोध रत्नाकर"था।

1897 मैं महाराष्ट्र में प्लेग नामक बीमारी फैलने की स्थिति में सावित्रीबाई फुले ने अपने पुत्र के साथ मिलकर प्लेट पीड़ितों की सेवा की और उनके लिए एक अस्पताल का भी निर्माण करवाया। जहां प्लेग पीड़ितों को इलाज उपलब्ध कराया जा सके।


परंतु सावित्रीबाई फुले के लिए समाज सुधार की यह रहा इतनी आसान नहीं रही। क्योंकि उस समय भारतीय समाज कट्टरपंथी विचारों से ग्रस्त था। जहां लड़कियों की शिक्षा को उचित नहीं समझा जाता था। ऐसे में लड़कियों को शिक्षित करते जाते समय सावित्रीबाई फुले के ऊपर गोबर और पत्थर फेंके जाते थे। परंतु उनके हौसले इतने मजबूत थे इसके पश्चात भी वह आगे बढ़ती गई ।



सावित्रीबाई फुले के लिए समाज सुधार करना अधिक मुश्किल तब हो गया। जब 1881 से 1920 के बीच बाल गंगाधर तिलक द्वारा कहां गया कि राष्ट्रीय की राष्ट्रीयता को क्षति से बचाने के लिए लड़कियों और गैर ब्राह्मणों को शिक्षा प्रदान नहीं की जानी चाहिए। परंतु सावित्रीबाई फुले ने फिर भी हार नहीं मानी। उन्होंने अपने विचारों के माध्यम से लोगों को समझाने का प्रयास किया की लड़कियों को शिक्षित करना हमारे समाज के लिए कितना आवश्यक है।


सावित्रीबाई फुले के कुछ प्रमुख विचार


सावित्रीबाई फुले के विचार वर्तमान समय में भी अपनी प्रासंगिकता  को दर्शाते हैं और  लोगों को प्रेरणा देते हैं।

सावित्रीबाई फुले का कहना था कि देश में स्त्री साक्षरता की भारी कमी है। क्योंकि स्त्रियों को कभी बंधन मुक्त होने ही नहीं दिया गया।


एक सशक्त स्त्री ही सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है। इसलिए उनको भी शिक्षा का अधिकार होना चाहिए।

बेटी के विवाह से पहले उसे शिक्षित बनाओ ताकि वह अच्छे और बुरे मैं फर्क कर सके।

शिक्षा स्वर्ग का द्वार खोलती है, स्वयं को जानने का अवसर देती है।


अज्ञानता को तुम पकड़ो, धर दबोचा मजबूती से पकड़ कर उसे पीटो और अपने जीवन से भगा दो।

पत्थर को सिंदूर लगाकर और तेल में डुबोकर जिसे देखता समझा जाता है। वह असल में पत्थर ही होता है।

स्वाभिमान से जीने के लिए पढ़ाई करो,पाठशाला ही इंसान का सच्चा कहना है।


इस धरती पर ब्राह्मणों ने खुद को स्वघोषित देवता बना लिया है।


उपरोक्त विचारों के माध्यम से सावित्रीबाई फुले नहीं समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य किया। ताकि अंधविश्वास,अज्ञानता का जो पर्दा समाज के कट्टरपंथी लोगों पर पड़ा था वह हट सके।


सावित्रीबाई फुले की मृत्यु कब हुई?


महाराष्ट्र में सन् 1897 मैं भयंकर प्लेग नामक महामारी फैल गई। ऐसे में सावित्रीबाई फुले ने आगे बढ़कर प्लेग पीड़ितों की मदद की उनके लिए पुणे में एक अस्पताल का निर्माण करवाया और लगातार प्लेग पीड़ितों की सेवा में जुटी रही। परंतु इसके कारण उन्हें स्वयं भी प्लेग का शिकार होना पड़ा और वह स्वयं 10 मार्च 1897 को मृत्यु को प्राप्त हो गई।


भारत में सावित्रीबाई फुले का नाम पहली महिला शिक्षिका समाज सुधारक और एक अत्यंत दृढ़ निश्चय वाली महिला के रूप में विख्यात है। उनका मानना था कि महिलाओं को भी शिक्षा का अधिकार का होना चाहिए। इसके लिए उन्हें काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा। और के इस संघर्ष को सम्मान देने के लिए हाल में सावित्रीबाई फूले के सम्मान में  पुणे के विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय किया गया है। 


वर्तमान समय में आप सावित्रीबाई फुले फोटो देखना चाहते है तो आप इंटरनेट का इस्तेमाल कर ऐसा कर सकते हैं।

इस बात में कोई दोरहा नहीं है कि सावित्रीबाई फुले द्वारा भारतीय समाज के उत्थान लिए अपने जीवन की अंतिम सांस तक  कार्य किया । वह एक ऐसे समाज का निर्माण करना चहाती थी जहां सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त हो भारतीय समाज में स्त्रियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता है। 


ऐसे में किसी महिला द्वारा शिक्षा प्राप्त करना और उसका प्रचार करना निश्चित ही एक कठिन कार्य था। परंतु सावित्रीबाई फूले हैं अपने दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास के बल पर भारतीय इतिहास के स्वर्ण अक्षरों से अपना नाम दर्ज कराया है और यह वर्तमान में भी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है। 


परंतु आज भी उनके विचारों को पूर्ण रूप से अमल में  नहीं लाया जा सका है। हमें वर्तमान समय में भारतीय समाज में समय - समय जातिगत भेदभाव और बड़ी संख्या में अशिक्षित महिलाओ को  देखा जा सकता है।


हमें उम्मीद है हमारे इसलिए लेख द्वारा आपको सावित्रीबाई फूले के विषय में काफी जानकारी आप यह जान गए होंगे कि सावित्रीबाई फुले कौन थी? और उनके द्वारा समाज सुधार के लिए क्या-क्या कार्य किए गए थे? वह वर्तमान समय में भी भारत में नारियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है।






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