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सितंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मूल निवासी, आदिवासी, गोडंवानी (कोयतुर) संस्कृति के मुख्य तत्व जो प्रथा एवं परंपरा की जानकारी

मूल निवासी, आदिवासी, गोडंवानी (कोयतुर) संस्कृति के मुख्य तत्व जो प्रथा एवं परंपरा मे विद्यान है। पृथ्वी की उत्पत्ति - प्रकृति की देन जो कि खगोलिय चुमबकीय गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा अपने कक्ष पर नाँचे से दाये अर्थात घड़ी की सूई के विपरित दिशा में (Anti clock vise) घुम रही है। मानव की उत्पत्ति एवं मूल निवास- प्रकृति शक्ति, पंच महाभूत, पूना उन्ना(सल्ला-गागरा) शक्ति प्रथम, जेष्ठ, दाऊ-दाई(फरावेन-सईलांगर) की कोख से 35 करोड़ वर्ष पूर्व फड़ाकलडूबहिम महापरलय) के समय के समय सिरडीसिंगार द्वीप से उत्पत्ति, निवास स्थान कोयामुरी, सुनुनु द्रीप, सयुंगार द्वीप, गंडो द्रीप जिसे ट्रायेजिक युय में गोडवाना लैण्ड कहा जाता था । जहाँ बाद में आगंतुकों ने वहाँ के मूल निवासियों को मूलनिवासी, द्रविड आदिवासी, हरिजन, बहुजन संबोधित किया। गोंडवाना लेण्ड उष्ण प्रदेश था। संबोधन गणडवेन, गण्डजीव, गॉँड, दैबीर, कोया, कोयतूर युग पुरुष- शंभुशेक(महादेवों) की 88 पीढ़ी, पाहीदी पारी कुपार लिंगो रक्षेन्द्र राज दशानन । युग माता-  कली कंकाली , रायताड़ जंगो, 88 शंभुओं की रानी (गौरा दाई नस्ल-रंग-ग्रेनाइट, स्लेटी (सांवला -कला) कद्- साधार

गोण्डवाना मे विवाह संस्कार का विकास की जानकारी।

गोण्डवाना मे विवाह संस्कार का विकास की जानकारी।   मरमिंग (विवाह ) संस्कार  हमारे टोण्डा  मण्डा कुण्डा  संस्कार  व्यवस्था  के  महत्वपूर्ण  मण्डा  संस्कार  का भाग है। मंरमिग  संस्कार  पेन करण के लिए   अनिवार्य  नेंग है। मंरमिग  संस्कार के  बिना हमारे  समुदाय  में  पेन करण नहीं  किया  जा सकता है। यह एक ऐसा तथ्य है, जो हमें  मरमिंग  के   उदविकास या समुदाय को  मरमिंग की जरूरतें  क्यों  पड़ी इस प्रश्न  की ओर संकेत  करता है, दरअसल  पहादीं पारी कुपार लिगों पेन  ने  मंरमिग  को ज्ञान  के हस्तांतरण व सामुहिकता के  गुणोंको  में  वृद्धि  की तकनीकी  के रूप में  देखते हुए  इसके सेक्स के  संकीर्ण  नज़रिए  को बदलकर  रखते हुए 750×3 टोटेमिक  आधार पर  मरमिंग  की शुरुआत  की । जिस तरह  मरम वनस्पति  अपने गोंदेला का समुदाय  में  विकास  करता है  उसी तरह  मरमिंग के  बाद  कोयतुर अपनी  परिवार  को विकसित  करते जाता है। इसलिए  मरमिंग के  समय मरम वनस्पति  से तैयार पवित्र  गिकी / चटाई में  बिठाकर  ही नेंग सम्पन्न  किऐ जाते हैं।  मृत्यु का डर मानव समुदाय को  अदृश्य और अलौकिक  शक्तियों को  मानने  को मजबूर  करते  आया है

प्रकृति मार्ग कोया पुनेम को समझे । पुनांग पंडुम का संदेश (“जानो-परखों-मानो") जाने समझे ।

  दुनिया के सबसे जागरूक प्रजातियों द्वारा मनाऐ जाने वाले    नवाखाई महापर्व ,पुनांग पंडुम का संदेश (“जानो-परखों-मानो") जाने समझे और आण्डम्बरो से तौबा कर प्रकृति मार्ग  कोया पुनेम को समझे । (1) मलेरिया परजीवी से सामना करने की कोयतोरियन टेक्नोलॉजी प्रणाम÷ लुले डयाना पाटा , नेसमेह वनस्पति का प्रयोग,  मलेरिया परजीवी के पनपने वाले जगहों की जानकारी,  व उनको मिटाने का रश्मो के द्वारा उपक्रम (2) दुनिया की प्रथम कृषिकरण के प्रमाण " गोडूम डिपा" (ऊपरी टिकरा मरहान) पर उगने वाली अर्ली वैराइटी जिसने मानव विकास क्रम में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है उसके प्रति सम्मान देना  प्रमाण:- भादो (अगस्त- सितंबर) में पकने वाली दुनिया की सबसे अर्ली वैराइटी के चावल  बालियों के पुजन का रश्म, पुनांग तिन्दाना पाटा /गीत में जिक्र,  प्रमाण:- ढलती बरसात के दिनों में मनुष्यों में आयरन की कमी अक्सर हो जाती है जिसको पुरा करने सामान्य चांवल से 75 गुना ज्यादा आयरन वाले धान की अदभुत वैराइटी के चाॅवल के पकवानों का परिवार के सभी सदस्यों को सेवा वितरण  प्रमाण:- पालोड़ आंकी पाटा द्वारा व  पालोड़ पत्तों के द्वारा इ

गोंड और गणपति में क्या अंतर है?

  गोंड और गणपति बहुत अंतर है। गोंडियन सगाजनो का गणपति यह पर्व नहीं है. कोई भी गोंडी गाथा, गोंडी पाटा में इसका जिक्र नहीं. हम औरो का अनुकरण करते करते अपने ही पंडूम त्यौहार, पर्व भूलते जा रहे है. गोंड कोयतूर यह पूरी तरह से सत्य के मार्ग पुनेम, प्रकृति को मानने वाला है. हमारा कोई भी काल्पनिक देवी देवता से कोई लेना देना नहीं है. क्या आपके पुरखा ने यह उत्सव मनाया है. हम कब तक धार्मिक गुलामगिरी में जकड़े रहेंगे. हमें अपने त्यौहार ना पता है ना हम जानने की कोशिश करते है. आप साइंस को मानते होंगे तो क्या बिना स्त्री पुरुष संजोग के बिना अपत्य प्राप्ति हो सकती है. क्या कभी पशु का सर हम मानवी शरीर में लगा सकते है. क्या ब्लड ग्रुप मैच करेंगा. यह कभी संभव नहीं. पुनेम सिर्फ वास्तविकता को मानता है. विज्ञान और प्रकृति को माननेवाला सबसे पहले सिर्फ कोयतूर है. जब भारत देश का सर्वोच्च न्यायलय कहता है की गोंड आदिवासी यह हिन्दू नहीं. तो फिर क्यों आप अपने आप को हिन्दू बनाने तुले है. हम बड़े जोरो से बोगस का विरोध कर रहे है भाई जब हम ही दुसरो को मानने लगे पूजने लगे तो सबसे पहले बोगस हम हुवे ना? गणपति उत्स

गोंडी और गोंडवाना कोयापूनेर साम्राज्य के पतन का असली कारण क्या है ?

  कोयापुनेम का ब्राह्मणीकरण ही गोंडी और गोंडवाना साम्राज्य के पतन कोयापुनेम, बौद्ध या जैन धर्म की तरह एक श्रमण परम्परा  का मानव धर्म है जिसमें हमेशा प्रकृति को प्राथमिकता दी गयी है और मानव को प्रकृति के साथ सम्मान और समर्पण के साथ सामंजस्य रखने को सलाह दी गयी है ! कोयापुनेम दुनिया का एकमात्र ऐसा धर्म है जो प्रकृति में व्याप्त धटनाओं पर आधारित है और कुछ भी ऐसा कुछ भी  स्वीकार नहीं करता जिनमें मानवीय हस्तक्षेप हो !  कोयापुनेम न तो आस्तिक और न ही नास्तिक बल्कि वास्तविक धटनाओं को प्राथमिकता देता है । पूरा का पूरा कोयापुनेम सच्ची प्राकृतिक व्यवस्था पर आधारित है जो कुछ प्रकृति में स्वतः हो रहा है बस उसी को पालन करना सिखाता है और उसी  साथ सामंजस्य बिठाना सिखाता है। प्राकृतिक स्रोतों और घटनाओं के आस पास ही मानव जीवन की उत्पत्ति, विकास, सार्थकता और सफलता नियत होती है । कोयापुनेम को मानव जीवन के क़रीब लाकर पारी पहांदी कुपार लिंगो ने इस धरती पर मानवीय मूल्यों को प्रकृति से जोड़कर देखा और बताया की मानव भी इसी प्रकृति का एक छोटी सी इकाई है । मानव की संरचना और व्यवहार प्रकृति की संरचना और व्यवहार का

750 क्या है? गोंडवाना 750 का मतलब क्या है? पूरी विस्तार से जाने।

    गोंडी धर्म में 750 का महत्व - हमारे सगाजनो को 750 के बारे में पता होना चाहिए ।अगर आप गोंड हो तो आपको अगर कोई पूँछ लिया तो आपको जवाब  पता होना चाहिये। कई बार दूसरे समाज के लोग आपको पूछें तो आप उन्हें विस्तार से समझा सके। की 750 का मतलब क्या है। तो चलिए विस्तार से जानते हैं।       750 का क्या अर्थ है? जाने गोंडी धर्म में महत्व -         750 का अर्थ है - शुरुआती अंक 7 से मतलब है। मनुष्य में सात प्रकार का आत्मा गुण होता है।     (1) सुख    (2) ज्ञान    (3) पवित्र    (4) प्रेम करना    (5) शांति    (6) आनंद    (7) शक्ति दूसरा अंक है 5 , पाँच का मतलब शरीर के पाँच तत्व से है। शरीर के पाँच तत्व   जिससे जीवन है - इनके बिना जीवन असंभव है।    (1) आकाश    (2) पृथ्वी    (3) पानी    (4) अग्नि    (5) वायु शून्य का मतलब है निराकर जैसे की हमारे प्रकृति का कोई आकार नहीं है। माँ के गर्व से भी शून्य का मतलब है।जैसे हम पृथ्वी पर जन्म लेते है।    0 = निराकार है, जिसका कोई आकार नहीं।      7+5+0=12 धर्म गुरु पारी कुपर लिंगो जी ने एक से बारह सगापेनो में बाँट दिया है। जैसे कि देवों की संख्या 2, 4,