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गोंड लोग किस देव (भगवान) को मानते हैं| कोयापुनेर का विस्तार कैसे हुआ|

गोंडवाना समाज का भगवान कौन है?    गोडी कुपारी लिंग कोया पुनेम तत्व ज्ञान  सागा (विभग गोत्रज समाज),  गोटुल (संस्कृति, शिक्षा केंद्र), पेनकड़ा (देव स्थल, ठाना),  पुनेम (धर्म)  मुठवा (धर्म गुरु, गुरु)  यह पांच वंदनीय और पूज्यनीय धर्म तत्व हैं। इनमे से किसी एक की कमी को पूरी तरह से तैयार किया गया है। मुठवा भट्टी कुपारी लिंगों ने अपने साकृत निरमल पारिश्रमिक मानव समाज से आदि वंशागत सामाजिक जीवन का व्यवसाय, सगायुक्त सामाजिक जीवन के लिए उपयुक्त व्यक्तित्व, नववंशीय निर्माण के कार्य से लेकर कुएं लिंगों को जन्म दिया गो टूटू इंस्टिट्यूशन की स्थापना की स्थापना की गई गोटूल, यह गो + गोगो भी अच्छी तरह से संतुलित है। "तुलु" मतलब थिया, जगह,स्थल इस प्रकार गोटुल का मतलब गोंगोठाना (विद्या स्थल, ज्ञान स्थल) है। काल में गोंडवाँ के रहने वाले गोंड वहा गोटुल संस्थान विद्दमान थे। फिर भी वे किसी भी व्यक्ति से संपर्क करते हैं। गो को अलग-अलग अलग-अलग हिस्सों में विभाजित किया जाता है । जैसे- भूईं गोंडि 'धंगर बस्से' (धंगर मतलब विद्या, बैसर्स मतलब स्थल), गान्या गोंडि 'गिप्रो' (गिती मत

कुमूरम भीम के बारे में l 𑴌𑴵𑴤𑴴𑴦𑴤 𑴣𑴳𑴤 Komaram Bheem (RRR)Movie 2022

   कोमाराम भीम के बारे में —              𑴌𑴵𑴤𑴴𑴦𑴤 𑴣𑴳𑴤      Biography Of Komaram Bheem In Hindi :  आप सब लोगों को पता है कि भारत एक ऐसा देश है जहां पर काफी सारे लोगों ने शासन और अत्याचार किया है। लेकिन इन सभी से लड़ने के लिए भारत में काफी सारे वीर योद्धा और क्रांतिकारियों ने जन्म भी लिया है। आज के आर्टिकल में हम कोमाराम भीम के बारे में जानने वाले हैं यह एक ऐसे क्रांतिकारी व्यक्ति थे जिन्होंने हैदराबाद के निजाम आसफ जली के द्वारा किए गए अत्याचारों के खिलाफ लड़ाई करते हुए ईश्वर को प्राप्त हो गए।  यहाँ पर हम Biography Of Komaram Bheem In Hindi जानने वाले है। जिन भी लोगो को कोमाराम भीम के बारे नहीं है पता है तो आज हम उनको कोमराम भीम की पूरी जीवनी बतायेगे। जिससे आप सब को पता चलेगा की उन्होंने देश के लिए कितने बड़े बड़े काम करते हुए अपनी जान दे दी ।  कोमराम भीम ने देश की सेवा के लिए अपना पूरा जीवन जंगल में ही बीता दिया। इनके द्वारा “ जल, जंगल और जमीन " वाले नारा आज भी सभी लोग को याद है। इस नारे का मतलब है कि जो भी लोग जंगल में रहते है उन सभी को पुरे संसाधन का प्रयोग करने का अधिकार

रानी दुर्गावती की जीवनी और इतिहास

           रानी दुर्गावती की जीवनी और इतिहास भारत की उन महान नायिकाओं में सबसे आगे रानी दुर्गावती का नाम आता है।  जिन्होंने अपनी मातृभूमि और अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।  रानी दुर्गावती कालिंजर के राजा किरत सिंह की बेटी और गोंड राजा दलपत शाह की पत्नी थीं।  उनका क्षेत्र दूर-दूर तक फैला हुआ था।  रानी दुर्गावती एक बहुत ही कुशल शासक थीं, उनके शासनकाल में प्रजा बहुत खुश थी और राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई थी।  न केवल अकबर बल्कि मालवा के शासक बाज बहादुर की भी उसके राज्य पर नजर थी।  रानी ने अपने जीवनकाल में कई युद्ध लड़े और उन्हें जीता भी।    रानी दुर्गावती का जन्म   रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालिंजर के किले में चंदेल राजा किरत राय (कीर्तिसिंह चंदेल) के परिवार में हुआ था। दुर्गा अष्टमी के दिन राजा कीरत राय की पुत्री के जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती पड़ा। वर्तमान में कालिंजर उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में आता है। उनके पिता राजा कीरत राय का नाम बहुत सम्मान से लिया गया था, वे उस चंदेल वंश से संबंधित थे, राजा विद्याधर ने महमूद गजनबी को युद्ध में

गोंडवाना पेन व वेन का अर्थ और दोनों मे अंतर.

पेन व वेन में अंतर   कोया पुनेम अनुसार जब मानव या जीव/वनस्पति जगत जब तक वह जीवीत रहता है तब तक वह वेन कहलायेगा। मतलब किसी जीव के शरीर में वायु, जल, और अग्नि, पृथ्वी (पंच शक्ति) का संचार होगा तब तक वह वेन रूप में होगा।  अर्थात कोई भी जीवित प्राणी या मानव वेन हैं। यदि जब किसी जीव या मानव की मृत्यु होने के पश्चात वह पेन रुप माना जायेगा।  वह इसलिए क्योंकि जब तक मानव व जीव जीवित है तब तक उसका शरीर पृकति से प्राप्त पांच प्रकार की उर्जा का उपभोग कर वह पुरा जीवन बिताता है और एक दिन वही प्राणी या मानव मृत्यु के बाद इस ऊर्जा को पृकति को वापिस करता है यानि पानी, मिट्टी आकाश, जल अग्नि समुचे वातावरण में समाहित हो जाता है।  अर्थात उर्जा कभी नष्ट नहीं होती है, केवल एक रुप से दुसरे रूप में स्थानांतरित होती है। कोया पुनेम मे वर्षों पहले इस ऊर्जा के सिंध्दात को पेन, वेन सिंदांत के रूप प्रतिपादित हमारे पुरखों द्वारा कर दिया गया था।   गोंडी में भाषा में एक वाक्य बोला जाता है    सासी पेन आतुर - इसका अर्थ मरकर के वह पेन हो गया। तोड़ी ता तोड़ी वड़ी ता वड़ी आयार - मिट्टी का मिट्टी और हवा हवा में मिल जायेंग

पेरियार के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी

  पेरियार के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी रामास्वामी का जन्म 17 सितम्बर 1879 को मद्रास प्रेसिड़ेंसी के इरोड नामक कसबे में एक धनी  व्यापारी नायकर परिवार में हुआ. बहुत शुरुआती जिन्दगी में ही उन्होंने जाति, धर्म और प्रजाति (रेस) के आधार पर होने वाले भेदभाव और शोषण को करीब से देखा. वे खुद भी इन कुरीतियों के शिकार हुए और इन्ही के कारण भेदभाव के खिलाफ उनके मन में क्रांतिकारी विचार जन्मे.  उनकी औपचारिक शिक्षा 1884 में 6 वर्ष की अवस्था में आरम्भ हुई, और पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई के बाद अध्ययन छोड़कर उन्हें अपने पिता के व्यवसाय में शामिल होना पडा. तब उनकी अवस्था 12 वर्ष की थी. उनका विवाह 1898 में उन्नीस वर्ष की अवस्था में 13 वर्ष की नागम्माल से हुआ, अपनी पत्नी को भी उन्होंने अपने विचारों में दीक्षित किया और पुरानी रूढ़ियों से आजाद कराया.  उनकी एक पुत्री जो इस विवाह से जन्मी थी वो मात्र पांच माह की अवस्था में गुजर गयी. उसके बाद उनकी कोई संतान नहीं हुई. दुर्भाग्य से उनका दाम्पत्य भी अधिक लंबा न रहा, और जल्द ही नागम्माल की मृत्यु हो गई. बहुत बा द के वर्षों में 1984 में पेरियार ने दूसरा विवाह किया, जब वे 74