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गोण्डवाना मे विवाह संस्कार का विकास की जानकारी।

गोण्डवाना मे विवाह संस्कार का विकास की जानकारी।





 मरमिंग (विवाह ) संस्कार  हमारे टोण्डा  मण्डा कुण्डा  संस्कार  व्यवस्था  के  महत्वपूर्ण  मण्डा  संस्कार  का भाग है। मंरमिग  संस्कार  पेन करण के लिए   अनिवार्य  नेंग है। मंरमिग  संस्कार के  बिना हमारे  समुदाय  में  पेन करण नहीं  किया  जा सकता है। यह एक ऐसा तथ्य है, जो हमें  मरमिंग  के   उदविकास या समुदाय को  मरमिंग की जरूरतें  क्यों  पड़ी इस प्रश्न  की ओर संकेत  करता है, दरअसल  पहादीं पारी कुपार लिगों पेन  ने  मंरमिग  को ज्ञान  के हस्तांतरण व सामुहिकता के  गुणोंको  में  वृद्धि  की तकनीकी  के रूप में  देखते हुए  इसके सेक्स के  संकीर्ण  नज़रिए  को बदलकर  रखते हुए 750×3 टोटेमिक  आधार पर  मरमिंग  की शुरुआत  की । जिस तरह  मरम वनस्पति  अपने गोंदेला का समुदाय  में  विकास  करता है  उसी तरह  मरमिंग के  बाद  कोयतुर अपनी  परिवार  को विकसित  करते जाता है। इसलिए  मरमिंग के  समय मरम वनस्पति  से तैयार पवित्र  गिकी / चटाई में  बिठाकर  ही नेंग सम्पन्न  किऐ जाते हैं।


 मृत्यु का डर मानव समुदाय को  अदृश्य और अलौकिक  शक्तियों को  मानने  को मजबूर  करते  आया है। इसी मृत्यु के  डर का फायदा उठाकर  कई समुदायों  ने धर्म / भगवान रूपी मनगढ़ंत कुटरचना कर  आज तक भी मानव समुदायों  को  ठगते आ रहे हैं। लेकिन हमारे शम्भू शेक सम्राटों  ने हजारो वर्ष पूर्व  पृथ्वी के  मानव समुदायों  को  संगठित  कर  वैज्ञानिक सम्मत मूदं शूल सर्री नामक दर्शन  देकर  मानव समुदाय को हमेशा  सजग बनाने  की  कोशिश  करते रहे। इसी शम्भू शेक  सम्राटों  के  मध्य  दौर में  पहादीं पारी कुपार लिगों पेन  द्वारा अपने विशाल विस्तृत जटिलताओं  से भरे ज्ञान पैकेट्स  को कोयतुर  समुदाय के  बीच 750 गोत्र सिस्टम  द्वारा  एक दुसरे  में सतत्  हस्तांतरित  करने  के  उद्देश्य से  सिस्टमेटिक  मरमिंग नेंग द्वारा  स्थापित  किए इसी ज्ञान संचय को और सुदृढ़  करने  के लिए  ही गोटूल नामक एजुकेशन सिस्टम में  गुजरने के  बाद ही अर्थात ज्ञान से परिपूर्ण होने के बाद ही  मंरमिग/विवाह  करने को अनिवार्य  बनाया गया था। इस प्रकार  टोण्डा गोटूल मण्डा कुण्डा संस्कार  आपस में  गुथे  हुऐ हैं। 


 लिगों  पेन  के  इस सिद्धांत  के  कारण  गोण्डीयन  समुदाय  मृत्यु के  भय से  दुर  हो गया था। इसलिए  गोण्ड समुदाय कुण्डा / मृत्यु  संस्कार में  भी मरमिंग(विवाह )  संस्कार  की तरह खुशियों व नृत्य  गीत  के साथ  मनाते आ रहा  है। क्योंकि  इन टोण्डा मण्डा गोटूल मण्डा संस्कार  से गुजर  कर गोण्ड स्वर्ग नरक के  घनचक्कर  में  फसें  बिना  सीधे पेन बनता है,यही  पेन भविष्य में  अपने नाती के नाती के नाती के नाती के नाती  का(अर्थात  आने वाली पीढियो का) मार्गदर्शन लिगों के बताए उस ज्ञान  ऊर्जा  पैकेट्स " के  माध्यम से  करता है दुसरी  ओर  मरमिंग  के  बाद वह सम-विषम  जोड़ा  अपने  सेक्स का इस्तेमाल अपने  पुरखों के  डीएनए  में  संचित  व गोटूल  में अर्जित  ज्ञान  को अपने आने वाली  पीढ़ी  अर्थात  अपने  पुत्र  में  हस्तांतरित करता है ताकि  वह  सुखमय जीवन निर्वाहन  कर सके वर्तमान  दौर  में  सेक्स  को बहुत  ही गलत दिशा में  मोड़ दिया गया है जबकि  कोयतोरिन  के लिए  सेक्स  अपने  पुरखों  व  अपने  द्वारा  अर्जित  ज्ञान को  अपने  आने वाली पीढ़ियों में  हस्तांतरित करने का  एक माध्यम  है। दरअसल  लिगों  पेन  ने ज्ञान  संग्रहण के कई  तरीके  इजाद  किऐ  थे।


 वर्तमान  मानव समुदाय  सिर्फ  मस्तिष्कीय क्षमताओं पर ही  निर्भर  रहा है। जबकि  कोयतोरिन टेक्नोलॉजी  में प्रत्येक  कोशिका में पाऐ जाने वाले  डीएनए  कणों   के  डाटा संग्रहण  क्षमताओं  का  भी व्यवहारिक  प्रयोग करते आ रहे थे ।इसलिए  हमारे  में  इतिहास  लेखन के लिए  लम्बे चौड़े  #ग्रन्थों  की  आवश्यकता  नहीं  पड़ी हम अपने  ज्ञान  को  इसी तरह  पीढ़ी दर पीढ़ी  अपने आने वाली पीढ़ियों में  हस्तांतरित  करते रहते हैं इसीलिए  लिगों  ने दुसरे  समुदायों  के  बीच  वैवाहिक  संबंधों को  पूर्णत  वर्जित  किया  है यह विवाह  सिस्टम  बहुत  जल्द एक अनिवार्य  व विश्वसनीय  नेंग में  परिवर्तित  हो  गई  क्योंकि  इससे  जन्म से लेकर  पेन तक सभी  सामाजिक  नियमों  को मरमिंग  से  संयोजित  कर दिया गया था फिर  इससे  सामुदायिक  जीवन  शैली  पनपने  लगी मंरमिग  से ही रिश्तों  को  आकार  मिलना

शुरू  हुआ मृत्यु  दर में  आश्चर्यजनक  रूप से  गिरावट  आने  लगी स्थाई कृर्षि व स्थाई नार  का भी विकास  होने  लगी। आगे चलकर  कोयतोर  मरमिंग व्यवस्था  को पुरे कुल के साथ  संबध के  रूप में  देखा  जाने लगा  जिसके  कारण  आजी गोंदली, काको गोंदली, याया  गतलीह, रेका डुडवा , मामा हाड़ींग आदि मरमिंग  नेंग देखने  को  मिलने  लगे। फिर  इस  संस्कार  को शिक्षा  प्रदान  करने के  उद्देश्य  में  भी  लगा दिया गया। जिससे  इरूक  मड़ा, हंरगी  मड़ा,  लेंडी  मड़ा जैसे  वृक्षों  को  शामिल  करना, तीर / दाब काड़ी/ चिड़चिड़ी आदि से तेल  नेंग  करना।

एर्र दोसाना  नेंग, हल्दी व हरंगी /गारा नीय आदि का प्रयोग  आदि अनेक  वैज्ञानिक सम्मत प्रक्रियाओं को  भी शामिल  कर इसे स्थाई परम्पराओं  में  परिवर्तित  कर दिया गया। फिर कालान्तर मे  पेन को सम्मिलित  कर पेन को ही मुख्य  आधार  मानते  हुए  पेन कौड़ी पेन नीप आदि के  माध्यम से  और व्यवस्थित  किया  गया। इससे  लिगों के  टोटेमिक  सिस्टम  से बाहर  जाने वालों पर पेन नियंत्रण आसान  हो  गया। आगे  चलकर  मरमिंग  नेंग  में राव पेन  सिस्टम  को भी सम्मिलित  कर वर वधू  को उस गांव से गहरे,  भावनात्मक  व पेन रूप से  भी  जोड़ने की  कोशिश की गई। कालान्तर मे और आगे  चलकर  गोटूल  लया लयोरों  को  एक समझ विकसित करने,  उनके  कला संगीत  व ज्ञान  को परखने  का  भी माध्यम  बना दिया गया। इस तरह  हमारे  मरमिंग  संस्कार  हजारों सालों से  लगातार  अनंत विशेषताओं को  ग्रहित करता  हुआ । आज इस विकसित  रूप में  है। परन्तु  बाहरी  समुदायों  से प्रेरित  होकर  अपने  मरमिंग  नियमों  में  बदलाव  करने की  वर्तमान भेड़ चाल से  सम्पूर्ण  गोण्डवाना  व्यवस्था  आज खतरे में  पड़ गई है।

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