गोंड और राजगोंड में अंतर बताएं? आखिर ये दोनों हैं क्या?
गोंड और राजगोंड में इन दोनों के बीच रोटी और बेटी का संबंध नहीं होता ऐसा क्यों?
गोंड क्या है कौन है?-
ये तो आप सभी गोंडियन समाज के सगाजनों को पता ही होगा कि हम कौन हैं क्या है? फिर भी जिसको नहीं पता है तो में उसको थोड़ा सांछिप्त में बता देता हूँ।
गोंड अनादि काल से रहने वाली भारत की प्रथम मूल जनजाति है या भारत की प्रथम मूलनिवासी जाति है। गोंड जनजाति को कोयतूर भी कहा जाता है क्योंकि कोयतूर भारत के प्रचीन नाम कोयामूरी द्वीप के रहने वाले वंशजों में से है।
कोया पुनेम में कोयतूर जन उसे कहा गया है जो मां की कोख से जन्म लिया है न की किसी के मुंह, पेट या भुजा या पैर से जन्मां हो।
गोंडी दर्शन के अनुसार भारत का प्रथम नाम गोंडवाना लैंड के नाम से जाना जाता है और द्वितीय नाम सिगार द्वीप एवं तृतीय नाम कोयामूरी द्वीप बताया गया है।
गोंड जाति के लोग प्रकृतिक पूजक होते हैं एवं उनका खुद का गोंडी धर्म है, और गोंड हिंदू नहीं है। क्योंकि गोंडो के हर रीति रिवाज धर्म संस्कृति बोली भाषा, तीज त्यौहार, रहन सहन, आचार विचार और संस्कार तथा सभ्यता सब हिंदूओ से भिन्न है। इतना तो आप सभी लोग जानते ही होंगे।
चलिए अब बात करते हैं राजगोंड की।
राजगोंड- राजगोंड न तो कोई जाति है न धर्म है, बल्कि यह गोंडो के द्वारा अलग से पृथक होकर बनायी गयी गोंड की उपजाति है।
कहा जाता है कि गोंड लोग सिर्फ गोंड राजाओं को ही राजगोंड बोलते थे।
इतिहासकारों ने बहुत से गोंड राजवंशों के राजाओं को राजगोंड बताया है, और ये भी बताया है कि राजगोंड एक गोंडो के द्वारा दी गई पदवी है।
गोंडी इतिहासकार डाक्टर सुरेश मिश्र ने बताया है कि
गोंड लोग राजगोंड उसे कहते थे जो पहले गोंड जनजातियों के बीच रहने वाला सरदार होता था या राजा होता था। क्योंकि वो गोंडो के बीच राज-पाट चलाता था और उसी राजा या सरदार की जो कुलीन शाखा बढ़ती गयी वो भी राजगोंड कहलाते गये। और बाद में वही राजा लोग दूसरे राजाओं के संपर्क में आने से बहुत से गोंड राजवंशों के राजाओं ने शैव धर्म अपना लिया और बहुतों ने हिंदू धर्म अपना लिया अपनी गोंडी संस्कृति को छोड़ कर।
स्टीफन फुश ने गोंड राजाओं को चार भागों में विभाजित किया है-
1. देवगोंड या सूर्यवंशी गोंड- रायपुर, रायगढ़, रतनपुर, धमधागढ़ क्षेत्र में राज करने वाले राजाओं को कहा गया।
2. राजगोंड- चांदागढ़, अलीदाबाद क्षेत्र में राज करने वाले राजाओं को कहा गया।
3. देवगढ़िया गोंड- देवगढ़, खेरला, भोपाल क्षेत्र में राज करने वाले राजाओं को कहा गया।
4. रावेनवंशी गोंड- गढ़मंडला, गढ़ा जबलपुर के क्षेत्र में राज करने वाले राजाओं को कहा गया।
जबकि दूसरे इतिहासकार जेकिन्स ने गोंडो को भौगोलिक आधार पर वर्गीकरण किया है-
जैसे मंडला के आसपास के मंडलहा गोंड,
खटोला, सागर, दमोह, रायसेन के खटुलहा गोंड।
चांदा के झरिया गोंड, एवं देवगढ़ के देवगढ़िया गोंड कहा है।
इंपीरियल गजेटियर ने इन्हें दो शाखाओं में विभाजित किया है-
राजगोंड- राजगोंड अर्थात कुलीन वर्ग जो गोंड लोग राजा होते गये उनके वंशजों के द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी।
ध्रुव गोंड- ध्रुव गोंड अर्थात सर्वसाधारण गोंड, मतलब गोंड राजाओं की प्रजा।
जहाँ तक उनके वर्गीकरण की वर्तमान स्थिति का प्रश्न है, आज भी गोंडो के वर्गीकरण के संबंध में जितने मुंह उतनी बात है।
सामान्यतः कोई सर्वमान्य वर्गीकरण न होकर हर स्थान पर अलग अलग प्रकार की शाखाएं प्रतिशाखाएं है।
हम मानते हैं कि राजगोंड अन्य शाखाओं की अपेक्षा कुलीन और श्रेष्ठ है। और श्रेष्ठ इसलिए है क्योंकि ये गोंडो का राज-पाट चलाते थे। लेकिन वही राजगोंड अगर गोंडो को नीचा माने या भेदभाव करे तो उससे बड़ा दोगला और समाजद्रोही राजद्रोही और कौन हो सकता है। क्योंकि ये कोई अलग से जाति नहीं है। ये गोंडो के ही द्वारा अपने सरदार या राजा को दिया गया संबोधन है।
जैसे हम ग्राम पंचायत में एक मुखिया चुनते हैं जिसे हम सरपंच या प्रधान कहते हैं लेकिन यदि कोई सरपंच या प्रधान को अपनी जाति बना ले तो यह तो लोचा है ना लेकिन लोगों ने ये भी जात बना ली है।
रसेल स्पष्टता गोंडो में दो कुलीन शाखाएं बताते हैं कि जो राजा थे वो राजगोंड और जो प्रजा थी वो खटुलहा गोंड।
हस्लाप ने गोंडो की बारह शाखाओं में पहली चार शाखाओं को बताया है, वे है- राजगोंड, रघुवाल, ददवे और कटुल्या को कोयतूर अर्थात श्रेष्ठ गोंड कोयतूर बताया है।
हस्लाप बताते हैं कि कोयतूर सभी गोंडियन शाखाओं की सर्वोच्च तथा सर्वश्रेष्ठ जाति है, क्योंकि इसका खुद का अपना गोंडी धर्म है संस्कृति है रीति रिवाज है और इस कोयतूर धर्म के संस्थापक पहांदी पारी कुपार लिंगों हैं।
गुस्ताव_ओपर्ट भी कहते हैं कि कोयतूर की पदवी चार वर्गों के गोंडो में लागू होती है- राजगोंड, पाडाल और धोली, और कभी कभी कोलाम, मारिया या सहरिया पर भी होती है।
अब प्रश्न यह है कि राजगोंड अन्य गोंडों से भिन्न और श्रेष्ठ क्यों समझे जाते हैं तथा उनका मूल क्या है? इस सम्बन्ध में पहला मत यह है कि राजगोंड राजपूतों और गोंडों के मध्य हुए विवाह सम्बन्धों से उत्पन्न हुए।
इस मत के प्रबल पोषक फोरसीथ हैं। कुछ अन्य विद्वानों ने भी ऐसा ही मत प्रकट किया है। दूसरा मत इससे भिन्न है। उसके अनुसार राजगोंड मूलतः गोंड ही हैं किन्तु कुछ ऐतिहासिक
या सामाजिक कारणों से वे राजगोंड कहलाए क्योंकि वे राजा थे। इन ऐतिहासिक या सामाजिक कारणों को ल्यूसी स्मिथ" स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि यह तो गोंडों के शासक वंशों के लिए ' राज ' उपसर्ग का प्रयोग किया जाता था या फिर यह उपसर्ग उन प्रमुख गोंड क़बीलों के लिए प्रयुक्त हो सकता है, जिन्होंने प्राचीनकाल में आदिम जातियों से ये प्रदेश जीते हों। हेमेंडार्फ लूसी स्मिथ के दूसरे सुझाव से सहमति प्रकट करते हैं। हिस्लाप के अनुसार शाही सत्ता प्राप्त करने के कारण उस गोंड वंश को राजगोंड कहा जाने लगा।
उपर्युक्त दो तर्कों के अतिरिक्त ग्रियर्सन का एक तीसरा तर्क है जो
सामाजिक से अधिक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के लिए है। उनका कहना है कि भारत के आदिम क़बीलों में प्रचलित प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप कालान्तर में जो गोंड अपने पड़ोसी हिन्दुओं के समाज का अंग बनने के लिए क्रमशः हिन्दू आचार-विचार मानने लगे, वे राजगोंड कहे जाने लगे। समग्र स्थिति का विश्लेषण करने से अनुमान होता है कि गोंडों की जिस शाखा ने अपने बाहुबल या चातुर्य से शासन शक्ति प्राप्त कर ली उस शाखा ने हिंदू धर्म अपनाया और वही अपने आप को राजगोंड मानने लगे।
आज के समय में जो गोंड लोग अपने आप को क्षत्रिय राजगोंड समझते हैं वो अपने ही गोंड समाज को भ्रमित किये हुए हैं और अपने आपको श्रेष्ठ मानकर अपने ही लोगों से भेदभाव करते हैं, ऐसे लोग समाज की संस्कृति को खत्म कर रहे हैं और हिंदू संस्कृति अपनाये हुए हैं।
सच कहा जाये तो राजगोंड, गोंडो के द्वारा बनाई गई एक अलग से उपजाति है जो अपने शानो-शौकत के लिए बनाया गया है। अपने आपको अपनी ही जाति वालो से श्रेष्ठ और ऊंचा मानने के लिए। लेकिन ये उन लोगों की गलत सोच व गलतफहमी है। और ये लोग राजगोंड को ही जाति बना लिए हैं और गोंडो की कुछ चुनिन्दा गोत्र कापी कर लिए हैं जिन जिन गोत्रों में गोंड राजा हुए थे।
ये लोग अपनी ही जाति वालो से श्रेष्ठ मानने के लिए हिंदू संस्कृति को अपना लिए है और गोंडी संस्कृति को नकारते हैं क्योंकि ये लोग गोंडी धर्म संस्कृति से असभ्य है। ये लोग नकली राजपूत क्षत्रिय राजगोंड बनने के चक्कर में अपनी ही मूल धर्म संस्कृति को भूला दियें है।
हमारे एक मित्र हैं पन्ना जिले के वो गोंडवाना समाज सेवक हैं, वे बताते हैं कि राजगोंड बड़े मनुवादी विचारधारा के होते हैं। ये लोग सिर्फ गोंड आदिवासी का आरक्षण खाते हैं और गुलामी मनुवादियों की करते हैं और इन राजगोंडो की कोई संस्कृति नही है ये लोग किसी भी जाति के लोगों से शादी कर लेते हैं अपना फायदा देखकर।
और बताते हैं कि ऐसे हमारे कितने गोंड समाज के लोग हैं जो आरक्षण के दम पर बड़ी बड़ी पोस्ट पर सरकारी नौकरी तो कर रहें हैं लेकिन अपनी जाति छुपाने के चक्कर में अपने आपको क्षत्रिय राजगोंड मानने लगे हैं और अपने ही समाज वालों से घ्रणा करने लगे हैं। बल्कि ये वही लोग है जो हर क्षेत्र में आदिवासी का आरक्षण खाते हैं या आरक्षण का लाभ लेते हैं और अपने आपको नकली राजपूत, ठाकुर, क्षत्रिय राजगोंड समझते हैं। इनमें से ज्यादातर राजगोंड लोग होते हैं जो अपने आपको नकली क्षत्रिय राजपूत ठाकुर समझते हैं।
मित्रों सच सच बताओ ऐसे लोगों को आदिवासियों का आरक्षण पाने का कोई अधिकार है या नहीं?
ऐसे लोगों का आरक्षण खत्म कर देना चाहिये और जाति प्रमाणपत्र भी निरस्त कर देना चाहिये जो अपने आपको नकली क्षत्रिय राजपूत ठाकुर समझते हैं। ऐसे लोगों को कोई अधिकार नहीं आदिवासियों का आरक्षण खाने का।
हमारे देश में कितने मूलनिवासी राजाओं ने शासन किया जैसे- मौर्य, शाक्य, यादव, सेन, भील, गोंड, पटेल, जाट और भी बहुत होंगे मूलनिवासी राजा लेकिन इन लोगों ने कोई भी अपने आपको क्षत्रिय राजपूत ठाकुर नहीं समझते। तो फिर ये राजगोंड लोग किस खेत की उपज हैं जो अपने आपको नकली क्षत्रिय राजपूत ठाकुर समझते हैं।
ये एक दिखावा है और कुछ नहीं। क्योंकि जब कभी आरक्षण और संविधानिक अधिकार की बात आती है तो वही लोग राजगोंड से गोंड बन जाते हैं और अपने आपको आदिवासी कहने लगते हैं।
इस बार विश्व आदिवासी दिवस पर मनावर विधायक हीरा लाल अलावा ने कहा था जो आदिवासी अपने आपको क्षत्रिय राजपूत ठाकुर राजगोंड समझते हैं वो अपनी औकात में रहें नहीं तो वो न घर का रहेगा न घाट का, जब भी कभी समाज का सर्वे हुआ तो तुम्हारा ये संविधान के द्वारा दिया हुआ संविधानिक हक अधिकार और आरक्षण छिन जायेगा। जैसे गुजरात के आदिवासियों का आरक्षण छिन गया है, और जाति प्रमाणपत्र निरस्त कर दिया गया है, जो अपने आपको नकली क्षत्रिय राजपूत ठाकुर समझते थे।
जिस किसी को भी ये पोस्ट पढ़कर ठेस पहुंचा हो, जो अपने आपको नकली क्षत्रिय राजपूत ठाकुर राजगोंड समझते हैं। तो माफ करना दोस्त, लोगों का भ्रम है गोंड और राजगोंड में इसलिए पोस्ट किया।
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संदर्भ- मध्यप्रदेश का गोंड राज्य, लेखक डा. सुरेश मिश्र
The Tribes and Castes of the Central Provinces of India- Russell, R. V. (Robert Vane)
जय सेवा, जय बड़ादेव, जय गोंडवाना
जय गोंडवाना कोयतूर सेवा समिति सैलारपुर
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