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गोंड वीर गुंडाधुर धुरवा की वीर गाथा।

 


वीर गुंडाधुर धुरवा गोंड का जीवन

गोंड वीर गुंडाधुर धुरवा की वीर गाथा।



गुंडाधुर का जन्म बस्तर के नेतानार नामक गाँव में हुआ था।

बस्तर की धुरवा जनजाति की बहुलता उसके परंपरा संस्कृति और लोकप्रियता बस्तर की पहचान है यहां आदिवासियों की विभिन्न जनजाति निवास करती है जोकि अपनी अलग पहचान परंपराओं पहनाओ बोली और जीवन शैली के लिए जानी जाती है

बस्तर के अधिकांश लोगों की आजीविका वन और वनोपज पर आधारित थी। वनोपज से ही वे अपना जीवनयापन करते थे।

 अंग्रेज भारत पर कब्ज़ा कर चुके थे। और धीरे-धीरे अपना शासान फैला रहे थे। फिर अंग्रेज सरकार ने वहाँ बैजनाथ पण्डा नाम के एक व्यक्ति को दीवान के पद पर नियुक्त किया था। दीवान बैजनाथ पंडा की नीतियों से वनवासी अपनी आवश्यकता की छोटी-छोटी वस्तुओं के लिए भी तरसने लगे। जंगल से दातौन और पत्तियाँ तक तोड़ने के लिए भी उन्हें सरकारी अनुमति लेनी पड़ती। आदिवासियों से बेगार भी ली जा रहा थी।

शराब ठेकेदार लोगों का शोषण करते थे।


जनता में असंतोष पनपने लगा. राजा के चाचा लाल कालेन्द्र सिंह और राजा की सौतेली माँ सुवर्ण कुँवर जनता में बहुत लोकप्रिय थे।  मुरिया विद्रोह के पश्चात एवं अन्य छोटे-छोटे विद्रोह के बाद 1910 में शासक रूद्र प्रताप सहदेव जो कि वह भैरमदेव के पुत्र थे के शासनकाल में मुरिया राज के लिए एवं तत्कालिक शासकों के शोषण के विरुद्ध आदिवासियों के विभिन्न जनजातियों के एकरूपता एवं संगठन का नाम था   "भूमकाल " इसे ही इतिहास में "भूमकाल विद्रोह" के नाम से जाना जाता है!



  भूमकाल विद्रोह


 लाल कालीन सिंह जो कि राजदरबार के दीवान भी रहे  थे के द्वारा मुरिया राज एवं सत्ता व्यवस्था के लिए जनसभा में युवा जमीदार गुंडाधुर ध्रुव को सर्वसम्मति से भूमकाल का सर्व दल नेता घोषित किया गया साथ ही सभी परगना के प्रमुख नेतृत्व कर्ता की घोषणा की गई जिसमें डीबराधुर घुरवा, सोनू मांझी, मुंडी कलार ,धानु धाकड़ आदि जोकि अलग-अलग जनजाति के थे यह बहुत ही विश्वसनीय थे इन्हें परगना का नेता चुना गया इस तरह   गुंडाधुर धुरवाा  को इंद्रावती  नदी के तट पर  ताडोकी के एक जनसभा में  भूमकाल  की कमान सौंपी गई!


 25 जनवरी 1910 को एक गुप्त सभा में तय किया गया कि विद्रोह करना है!


   “ मावा नाटे मावा राज”


            बस्तर  आदिवासियों का है और हम इसे लेकर रहेंगे

                           आदिवासी विद्रोह



 2 फरवरी 1910 को मुरिया राज की संकल्पना के साथ भूमकाल विद्रोह का प्रारंभ हुआ पूूसपाल के बड़े बाजार में बाहरी व्यापारियों को लूटा गया एवं मार दिया गया 5 फरवरी 1910 को पुसपाल  बाजार को लूटा गया और आदिवासियों में बांट दिया गया

 6 फरवरी 1910 को तात्कालिक राजा रूद्र प्रताप सिंह देव ने तत्कालिक स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सेंट्रल सर्विस के चीफ को तार भेजकर मदद की गुहार लगाई। 13 फरवरी तक अनेक छोटी-छोटी  विद्रोह के बाद दक्षिण पश्चिम बस्तर  गुंडाधुर एवं उनके अन्य समर्थकों के कब्जे  मैं आ गया!


 अंग्रेजों ने  सैन्य टुकड़ी के साथ कैप्टन गियर को राजा की मदद के लिए भेजा गया राजा ,पंडा बैजनाथ और कैप्टन गियर ने आदिवासियों विद्रोह को शांत करने का निर्णय लिया आदिवासियों की संख्या एवं मनोबल देख कर अंग्रेजों के पसीने छूट गया कप्तान गेयर आदिवासियों को मिट्टी की कसम खाकर अत्याचार खत्म करने का घोषणा की तथा आपसी सर्वसम्मति से रहने के लिए गुजारिश की और आदिवासियों को भी कसम दिलवाई कि वह भविष्य में कोई विद्रोह नहीं करेंगे इस तरह विद्रोह को  शांत कराया गया!

 किंतु अंग्रेजों की छलावा करने की पुरानी आदत रही है कैप्टन गियर के द्वारा और संयोग मंगाया गया और बाहर से सैनिकों के टुकड़ी आने के पश्चात विद्रोहियों पर हमने बोल दिया गया अंग्रेजों की इस कायराना हरकत उसे सभी विद्रोही आश्चर्यचकित हो गए अंग्रेजो के द्वारा पहले विद्रोहियों को महल से खदेड़ा गया  तथा इस विद्रोह में 15 मुख्य विद्रोही गिरफ्तार हो गया किंतु गुंडाधुर अंग्रेजों की पकड़ से बाहर ही रह गए!


इस छलावा से आदिवासी और भड़क गए गुंडाधुर ने एक बार फिर अपनी सेना संगठित की तीर-कमान ,कुल्हाड़ी, टंगिया से सुसज्जित किया गया और जगदलपुर अभियान पर निकले विद्रोह बढ़ गया महीनों तक छोटी-छोटी लड़ाइयां लड़ी गई!  गुंडाधुर के नाम से अंग्रेज  कांप उठते थे

 गुंडाधुर के नाम से अंग्रेज ,राजा ,दीवान और सैनिक  कांप उठते थे अंग्रेजों  मैं विद्रोहियों का दहशत फैलता जा रहा था पहली बार महीनों तक किसी आदिवासी ने अंग्रेजों की नाक में दम कर के रखा था और अपना डंका बजाया था छोटी-छोटी लड़ाईया लड़ने के लिए गुंडाधुर खुद उपस्थित रहते थे इस लड़ाई के बाद गुंडाधुर ने कप्तान घर पर हमला कर दिया और इस तरह अंग्रेजों की कायराना हरकत के जवाब दिया गया किंतु कैप्टन केयर भागने में कामयाब हो गए!


गुंडाधुर धुरवा गोंड


 24 मार्च 1910 को गुंडाधुर और उसके अन्य साथी अलनार  मैं अपनी सभी लड़ाईयों का उत्साह मनाने के लिए एकत्र हुए मुरिया राज की स्थापना की खुशी के साथ साथ नगाड़े की थाप जंगल में गूंजने लगी सभी जश्न के खाने एवं महुआ मदीने के नशे में डूब गया चारों तरफ खुशी का माहौल था !

इसी खुशी के माहौल में एक परगना प्रमुख सोनू मांझी जो कि गुंडाधुर के विश्वासनिय हुआ करते थे विद्रोहियों की एकत्र होने की खबर कप्तान  गेयर को दे दी जोकि भाग कर छुपे हुए थे गेयर अपने सैनिकों की टुकड़ी के साथ अनार की तरफ बढ़ने लगे सोनू मांझी ने मार्गदर्शन किया और विद्रोहियों के स्थान पर ले गए अंग्रेजों ने इलाके को चारों तरफ से घेर लिया गुंडाधुर उनकी आहट से सचेत हो गए उन्होंने बाकी लोगों को जगाने की कोशिश की किंतु नशे में डूबे बाकी साथी हथियार उठाने के  बात तो दूर खड़े होने की स्थिति में भी नहीं थै!

     

    गुंडाधुर से अपना तलवार निकाला और जंगलों की ओर भाग निकले अंग्रेजों ने विद्रोहीयों पर गोली चलाना शुरु कर दिया किंतु इस बार भी गुंडाधुर  को पकड़ने में  असफल रहे गुंडाधुर जानते थे यदि वे पकड़े गए तो भूमकाल विद्रोह हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा।  इस मुठभेड़ में डीबराधुर  गिरफ्तार कर लिए गए इन्हें नगर के बीचोंबीच इमली के पेड़ पर फांसी में लटका दिया गया। अंग्रेजों ने जंगल और पहाड़ों की छान मारा पूरी कोशिश की  गुंडाधुर को पकड़ने के लिए लेकिन वे नाकामयाब रहे।बाद में आदिवासियों और अंग्रेजो के बीच एक समझौता हुआ जिसमें आदिवासियों पर अत्याचार नहीं करने, करो में सुविधा देने एवं अनावश्यक हस्तक्षेप ना करने  की बात रखी गई!

शहीद गुंडाधुर घुरवा गोंड


 इस तरह बस्तर का  महान भूमकाल विद्रोह को शांत कराया गया किंतु  गुंडाधुर की वीरता और पराक्रम की गाथा आज भी बस्तर के जंगलों में गूंजती रहती है। इतिहास के पन्नों में हमेशा हमेशा के लिए अजय व अमर हो गई!






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