एकबार गोंडीयन संस्कृती के जाणकार एंव महानुभावों की चर्चा मे यह सवाल आया था की ,
हम कोईतुर (गोंडीयन) सगाजीवों का विभाजन देवों या पेनों नुसार कैसा हुआ होंगा ?
क्या है कोया (गोंडीयन) संस्कृती के रंगो का रहस्य या तत्वज्ञान ?
गोंडीयन संस्कृती के गोंडी धर्म ध्वज मे दर्शायें 1 से 7 देवों (पेन) के सात रंग कैसे क्रम नुसार किये होंगे ?
सात रंग ,सात देवों को किस आधार पर प्रथम महाधर्मगुरु पहांदी कुपार लिंगो द्वारा आंबटित किये होंगे ?
क्या यह बरसात के दिनों मे दिखने वाले वर्षाधनुष्य के रंगो नुसार लिये होंगे ?
या किसी ओर रहस्य या तत्वज्ञान नुसार ?
हमारे प्रथम महाधर्मगुरु पहांदी पारी कुपार लिंगो ने कोयामुरी द्वीप का भ्रमण किया था ।
तभी उन्होने देखा था की, अलग अलग प्रांतो या प्रदेशों मे या विभागों मे अलग अलग प्रकार के अन्नधान्य या फसलों की पैदाईस या उगाई होती है । सभी प्रदेशों में एक ही प्रकार के अन्नधान्य या फसल उगाई नही जाती या निर्माण नही होती है।
उनके बौद्धिक ज्ञान से उन्हे, यह पता चला की अलग अलग प्रदेशों या संभाग मे अलग अलग प्रकार की खनिज युक्त जमीन है, और उन खनिजों के रंग भी अलग अलग है। जमीन मे जिस प्रकार के खनिज मौजुद है, उसी अनुसार वहा की फसल उगाई जाती है, वहा के अन्नधान्य उगते है या निर्माण होते है। उन्ही अन्नधान्य को वहा की नस्ल या पिढियां या कौम या जीवीत लोग उसे सेवन कर के जीवन जीतें है । वही खनिजों पर उत्पादीत हुए पौधों को या उससे उत्पादित हुए, निर्माण हुए अन्नों का सेवन करने से शरीर मे उसी खनिजों के अंश या खनिज, सेवनों या खाने द्वारा खुन में जाते है।
और उसी प्रकार का खुन या अन्य बातें उस खनिज युक्त शरीर में बनती है।
उसी खुन की शादी या विवाह अगर उसी खुन में किया गया, तो पैदा होनेवाली पिढी या नस्ल एक हि ग्रूप में शादी करने से कमजोर ,बिमार, अशक्त ,पंगु निकलती है। यह उन्होंने ने अपने भ्रमण के दौरान देखा था की ,कबिलों में रहनेवाली टोलियों या गृप में रहनेवाली उस वक्त की जमातीयां अधु, अपंग, विकृत ,अशक्त एंव कुरुप थी और आपसी मारधाड या टोलियों के युद्ध के दौरान भारी मात्रा में नष्ट होती थी। उन्होंने उस वक्त यह भी पाया था ,देखा था ,और जाना था कि हरेक अलग- अलग क्षेत्र मे पायी जानेवाली खनिजे अलग -अलग है।
उनके रंग भी अलग- अलग है, एक दुसरे से निराले है।
उन्होंने यह भी सोचा था की, अलग -अलग या एक दुसरें से निराले खनिजों से उत्पादीत हुए अन्न को सेवन करणे वाले नस्लों को अगर एक "विवाह बंधन" से जोडा जाये तो ,उनके संकरण से निर्माण होने वाली नस्ल या पिढी ,कौम उमदी ,ताकतवार , दमदार एंव बुद्दीजीवी निकलेगी। इसी सोच को ध्यान मे रखते हुए ,उन्होने माता कली कंकाली के बच्चों को शिक्षीत एंव दिक्षीत कर के कोया पुनेम के सिध्दांतों का प्रचार एंव प्रसार हेतु अलग अलग प्रांतो मे भेजा।
उस वक्त के कोईतुरों के कबिलेयों को ,इस विवाह हेतु के थेअरी से अवगत कराकर, उसका ज्ञान देकर और उन प्रांतो या संभागो के लोगो का विवाह ,दुसरे विभागो या प्रांतो के लोगो से करके एक बलवान पिढी को निर्माण किया। और आकाश में निकलनेवाले वर्षाधनुष्य की रंगीन थेअरी का ज्ञान समझकर ,रंगो के तत्वज्ञान का क्या रहस्य होगा ? यह जाणकर, उन्होंने प्रदेशों में मिलनेवाले खनिजों के रंग नुसार प्रदेशों मे रहनेवाले निवासीयों को कलर आंबटीत किया।
जिन संभागो या प्रांत में जो खनिज हो ,उन खनिजों का जो कलर हो ,उस संभागो मे रहने वाले ग्रूप को वह कलर दिया है।
उस नुसार प्रदेशो में मिले खनिज के कलर या रंग नुसार का विवाह से संकरण किया है। दो कलर मिक्स होकर जो कलर या रंग पैदा होता है, वह अलग पैदा या निर्माण होता है।
यह आज के युग में विज्ञान के कसौटी के नुसार, रंगो का तत्वज्ञान- Colour Philosophy- नुसार सिद्ध हुआ है की, कौन सा रंग किस रंग में मिलाने से कौन सा सशक्त रंग निर्माण होता है।
क्यो की हमारा मानवी शरीर भी रंगों की थेअरी नुसार ही है ,इसलिये रंग चिकित्सा पध्दती नुसार ही कभी कभी हमारी बिमारीयों को ठिक किया जाता है .यह ध्यान रहे। उसकी बदौलत आज हम अभी एक ही जगह रहकर भी अलग अलग नस्ल या खुन के सम- विषम सगा गोंडीयन विवाह कर सकते है। और पिले कलर के बारें मे यह तत्वज्ञान है की , जन्म एंव मरण ,इन दो महत्वपुर्ण बातों का अंश पिले कलर मे समाविष्ट हैं।
जन्म के समय या मृत्य के समय गण्डजीव पिला होता है।
यही कुपार लिंगोजी दिव्य ज्ञान था।
गोंडी पुनेम के सात रंगो का ध्वज दर्शन -
गोंडी धर्म का ध्वज २x३ आकार का सतरंगी ध्वज होता है। इस ध्वज के सात रंग मुल श्वेत रंग से सतरंगी किरणो के रूप मे बाहर निकलते हुये दिखाई देते है। सफेद रंग का जो पट्टा होता है, वह पेन शक्ती की श्वेत ज्योती का प्रतिक है, जिसके सल्ला गांगरा (दाऊ दाई) शक्ती की क्रिया-प्रक्रिया से गोंडी पुनेमी गण्डजीवो के सात सगाओं का प्रादुर्भाव हुआ है। इसके अतिरिक्त श्वेत रंग पर परसापेन शक्ती के सल्ला गांगरा शक्ती का प्रतिक अंकित होता है। सात सगाओं के सात पट्टो के रंग आकाशी, शेंदरी, जमुनी, लाल, मिठ्ठू, हरा तथा पिला ये होते है। हर एक सगा का जो रंग होता है उस पर तीरनुमा चिन्ह से सगा देवो की संख्या अंकित होती है. आकाशी रंग के पट्टे पर एक तीर, शेंदरी रंग के पट्टे पर दो तीर, जमुनी रंग के पट्टे पर तीन तीर, लाल रंग के पट्टे पर चार तीर, मिठ्ठू रंग के पट्टे पर पंच तीर, हरे रंग के पट्टे पर छह तीर, पिले रंग के पट्टे पर सात तीर अंकित होते है।श्वेत रंग की पट्टी पर जो परसापेन शक्ती का प्रतिक अंकित होता है, उसमे लंबाकार प्रतिक सल्ला शक्ती का और गोलाकार प्रतिक गांगरा शक्ती का प्रतिक है. सल्ला और गांगरा शक्ती के क्रिया प्रक्रिया से जो ज्योती प्रज्वलित दिखाई देती है वह जीव जगत की ज्योती है, जिसमे से सात सगाओं का प्रादुर्भाव हुआ है। सल्ला और गांगरा प्रतीको के नीचे जो त्रिशूलनुमा प्रतिक होता है वह गोंडी पुनेम दर्शन का त्रेगुण्यशूल मार्ग का प्रतिक है। जिसे जय सेवा दर्शन कहा जाता है। जय सेवा दर्शन का त्रेगुण्यशूल मार्ग गण्डजीवो के बौद्धिक मानसिक और शारीरिक अंग से संबंधित है। जय सेवा दर्शन के त्रिशूल मार्ग से चलकर ही सभी जीवो का कल्याण साध्य किया जा सकता है, ऐसी गोंडी पुनेम की मान्यता है। सगा समुदाय के गण्डजीवो का कल्याण करना ही गोंडी पुनेम का अंतिम लक्ष है। गोंडी पुनेमी गण्डजीवो के जो बारह सगा शाखाये है, वे कुल ७५० गोत्र नामो मे विभाजित है. इसलिये गोंडी पुनेम दर्शन मे ७५० के अंक को शुभांक या चोखो सगुन माना जाता है। इसलिये ७५० का अंक त्रीशुलाकार चिन्ह के मध्य मे अंकित होता है। यह ध्वज गोंडी पुनेमी गण्डजीवो का सांस्कृतिक मुल्यो का साक्षात दर्शन करता है।
जय सेवा यह दो शब्द नही है।
जय सेवा इन दो शब्दों मे संपूर्ण गोंडी पुनेम समाया है। इसालिये जय सेवा कहने से जन्म से मृत्यू तक सेवा भाव मन मे हमेशा जागृत रहे .यही उच्च सोच है। इसी भावों के साथ सभी को जय सेवा जय गोंडवाना।
आपका
गोंडीयन सगाजीव
अवचितराव सयाम
वर्धा (नागपूर)
महाराष्ट्र
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